For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अतुकांत कविता

सोचा था आईने की तरह
साफ़ रखूँगी अपना चेहरा
पर कुछ तो है जो छिपा जाती हूँ
यूँ भाव चेहरे के बदल लेती हूँ
कि कहीं प्रतीयमान न हो जाये|

बोलती थी कभी बेधड़क हो
कुछ तो है जो किसी कोने में
मौनव्रत रख बैठ जाती हूँ
कि कही कुछ प्रतीप न हो जाये|

आँखों में भी दिखता था कभी
दूसरे की गलत बातो का प्रतिकार
पर किसी का तो डर है जो
अब आँखों को झुका लेती हूँ
कि कही कोई प्रतिलोम ना हो जाये|

किसी भी घटना पर कुछ कह ना दूँ
इसी कारण खुद को परे कर लेती हूँ
सुनने की आदत नहीं है अतः
झगड़े से खुद को ही परे रख
अपने उद्वेलित भाव छुपा लेती हूँ
कि कही कोई प्रतिवाद ना हो जाये|

किसी भी अंगप्रत्यंग से
प्रतिबोध झलक ना जाये
इसी डर से अब मैं अक्सर
लोगो से कतराने लगी हूँ
भीड़ से परे रखती हूँ खुद को
कि कोई कही प्रतिघाती न हो जाये|| 

सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 1707

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 2, 2014 at 3:01pm

कई बार ज़रूरी हो जाता है कि न दिखे चेहरा अंतर का आईना....

ऐसी ही परिस्थितियों को शब्दबद्ध करती सुन्दर अभिव्यक्ति 

हार्दिक बधाई आ० सावित्री मिश्रा जी 

Comment by savitamishra on August 2, 2014 at 2:21pm

जिंतेंद्र भाई और गिरिराज भैया हार्दिक आभार आप दोनों का दिल से

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 2, 2014 at 11:54am

 मन के भाव को, बहुत सुन्दरता से बयां करती रचना पर आपको हार्दिक बधाई आदरणीया सविता जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 2, 2014 at 10:05am

सुन्दर रचना , आदरणीया , बधाई |

Comment by savitamishra on August 1, 2014 at 12:06pm

आमोद भाई शुक्रिया आपका

Comment by savitamishra on August 1, 2014 at 12:06pm

लिखते वक्त प्रतिवाद और प्रतिघात शब्द आये तो दिल ने कहा क्यों न प्र वाले ही शब्दों से अंत करे सभी और कर दिए आप बडो का प्रशंसनीय शब्द सुनने के लिय शायद .......सादर आभार आदरणीय ...सादर नमस्ते

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 1, 2014 at 10:58am

सविता जी

आपने प्रतीयमान ,प्रतीप ,प्रतिलोम, प्रतिवाद और प्रतिघात  का प्रयोग किया है  प्र  से कोई विशेष प्रेम या  प्रयोजन  ?------ प्रशंसनीय !                                                                                        

Comment by savitamishra on July 31, 2014 at 10:00pm

बहुत बहुत शुक्रिया आपका प्रोत्साहन भरे शब्द बोलन एके लिए

Comment by Amod Kumar Srivastava on July 31, 2014 at 8:58pm

शानदार अभिव्यक्ति .... बधाई हो ॥ उम्दा रचना ... बधाई स्वीकार करें ... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 31, 2014 at 7:23pm

मन के द्वन्द से उपजे भाव रचना बन कर प्रस्फुटित हुए ,बहुत खूब बधाई आपको इस सुन्दर रचना के लिए |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service