For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सांत्वना (लघु कहानी)-लक्ष्मण लडीवाला

पत्नी की म्रत्यु के २ वर्ष बाद ही बीमार रहने लगे मथुरा के संभ्रांत और संपन्न परिवारके श्री काशी प्रसाद जी का

८५ वर्ष की उम्र में देहांत हो गया | रात को शौक जताने आयेरिश्तेदार दुःख की घडी में सांत्वनाजता रहे थे, तभी

उस परिवार की बहुएँ खिलखिलाती हुईआई और सीधे बैठक के ऊपर वाले कमरे में चली गयी | बड़े बेटे ने झेपते

हुए बताया की येकिरायेदार का परिवार है | उसी समय नौकर आकर बोला“साहब जी, होटल से सब खाना खाकर

लौट आये है, और आपके लिए खाना पेक कराकर लाये है जल्दी आ जाना वर्ना खाना ठंडा हो जाएगा | सांत्वना

देने आये सभी रिश्तेदारों ने यह कहते हुए विदाई ली“प्रभु मृतक की आत्मा को शान्ति प्रदान करे”

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 919

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 10, 2014 at 2:54pm

लघु कथा का तथ्य पसंद कर सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी, सादर 

टंकण त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाने के लिए आपका आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 9, 2014 at 5:12pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी, आपकी इस लघुकथा ने मुझे हैदराबाद प्रवास के दौरान अपने साथ हुए उस वाकये का स्मरण करा दिया जिसके प्रति इतने दिन हो गये किन्तु आजतक मैं संयत नहीं हो पाया हूँ. मेरी हालत भी तब आपकी कथा में वर्णित सांत्वना देने आये लोगों वाली हो गयी थी. यह दशा सामाजिक रूप से अचानक तथाकथित ऐडवांस हो गये परिवारों की हो गयी है. बहुओं  का ज़िक्र कर आपने परिवारों में संवेदनहीनता के स्थायी हो जाने के भाव को साझा किया है जिसे भरपूर समर्थन घर-परिवारों के ही संवेदनशीलता ओढ़े किन्तु भावनात्मक रुप से पूरी तरह से असहाय हो चले बेटों से मिल रहा है. ऐसे परिवारों में बुजुर्गों की पारिवारिक, सामाजिक और मानसिक दशा इतनी दयनीय हो जाया करती है कि वे जीते जी न केवल हाशिये पर चले जाते हैं बल्कि उनकी ज़िन्दग़ी ही प्रश्नवाची दायरों में आ जाती है.

तभी तो, उनका जाना परिवार के लोगों के लिए ’मुक्ति का उत्सव’ न हो कर ’जान छूटी’ का उन्मादी संतोष हुआ करता है. इस लघुकथा के माध्यम से बहुत ही संवेदनशील मुद्दा साझा किया है आपने.

इस लघुकथा के तथ्य और ऐसी प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय.

यह अवश्य है, कि कुछ टंकण त्रुटियाँ वाचन-प्रवाह में खलल डालती हैं. शोक शब्द शौक हो गया है जबकि दोनों के मायनों में जमीन आसमान का अंतर है.

ऐसी ही अन्यान्य और कमियाँ दुरुस्त की जा सकती हैं. 

सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 5, 2014 at 5:15pm

जी आदरणीया मंजरी पाण्डेय जी, वास्तव में यह कहानी आँखों देखी घटना पर ही आधारित होने के कारण हकीकत ही है |
आपका हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 5, 2014 at 7:41am

आदरनीय लक्ष्मण भाई , आधुनिक समाज मे रिश्तों के घटते स्तर , भाव शून्य, बनावटी  होते रिश्तों को आपने बहुत अच्छे से उजागर किया है ! आपको बहुत बधाइयाँ ॥

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 4, 2014 at 1:08pm

लघु कहानी के पर आपकी टिपण्णी से मान और बढ़ गया | आपका बहुत बहुत आभार श्री शुभ्रांशु पाण्डेय जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 4, 2014 at 1:05pm

लघु कथा पसंद करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीया प्रियंका सिंह जी और सविता मिश्रा जी | सादर 

Comment by mrs manjari pandey on July 3, 2014 at 8:42pm
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लाडीवाला जी ज़मीनी हकीकत से जुडी कथा के लिए बधाई
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 3, 2014 at 1:03pm

लघु कथा पर उत्साहवर्धन करती आपकी टिपण्णी के लिए ह्रदय से हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 3, 2014 at 1:01pm

आत्मीय सवेदना के क्षरण को लघु कथा में समझ कहानी पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री (डॉ) गोपाल नारायण 

श्रीवास्तव जी | सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 3, 2014 at 12:58pm

लघु कथा पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री शुशील सरना जी, श्री जितेन्द्र "गीत" जी. और श्री बृजेश नीरज जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service