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“देखो नेहा वो अभी भी घूर रहा है” झूमू ने नेहा का हाथ पकड़े-पकड़े हर की पौढ़ी पर  गंगा में डुबकी लगाते हुए कहा|”बहुत बेशर्म है अभी भी बैठा है इसको पता नहीं किस से पाला  पड़ा है, इसका मजनू पना अभी उतारते हैं शोर मचाकर” उसको थप्पड़ दिखाती हुई नेहा आस पास के लोगों को उकसाने लगी|

इसी बीच में न जाने कब झूमू का हाथ छूट गया और वो तीव्र बहाव में बहने लगी|छपाक!!!!! आवाज आई और कुछ ही देर में वो युवक झूमू को बचाकर बाहर निकाल लाया|

थोड़ी दूर  खड़ा एक पुलिस वाला भी आ गया और  “बोला इन साहब का शुक्रिया अदा करो ये इंटरनेश्नल स्वीमर चेम्पियन स्वप्निल झा जी  हैं जो हरिद्वार घूमने आये हुए हैं  और  निःस्वार्थ एक हफ्ते  से लोगों की हेल्प कर रहे हैं न जाने कितने डूबते हुए  लोगों को बचा चुके हैं”

अपलक देखती नेहा को वो युवक  बोला “ मैडम अपनी आँखों से  ये चश्मा उतारिये जो सिर्फ एक ही रंग देखता है  दुनिया में और भी रंग हैं” !!!!  

मौलिक और अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 24, 2014 at 5:01pm

बहुत- बहुत शुक्रिया प्रिय सावित्री राठौर जी |

Comment by Savitri Rathore on June 24, 2014 at 4:45pm

दुनिया के रंग दिखाती सुन्दर लघुकथा हेतु बधाई राजेश जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 23, 2014 at 5:02pm

आ० विजय मिश्र जी ,लघु कथा के मर्म का आपके द्वारा अनुमोदन मेरा उत्साह वर्धन कर रहा है बहुत- बहुत शुक्रिया आपका |

Comment by विजय मिश्र on June 23, 2014 at 3:41pm
आदमी का नहीं ,समय और इसकी चलन का दोष है | चश्मे से नहीं हाँ चिंतन और परीक्षण के सामर्थ्य से नजरिया ब्स्लता है |एक खास तरह का सन्देश जो आम से अलग है |साधुवाद राजेशजी |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 23, 2014 at 10:27am

आ० गिरिराज भंडारी जी ,आपकी सराहना और भावों का अनुमोदन मेरी लघुकथा को सार्थकता प्रदान कर रहा है हार्दिक आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 23, 2014 at 10:20am

आदरनीया राजेश जी , सच है दुनिया मे हर रंग मौज़ूद है , हम अपनी सोच के अनुसार वही रंग ही देख पाते हैं जैसी हमारी सोच होती है । सार्थक लघुकथा के लिये आपको बधाई आदरणीया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 23, 2014 at 9:36am

प्रिय विन्दु बाबू ,आपने लघु कथा के मर्म को दिल से महसूस किया बहुत बहुत आभारी हूँ ,दरअसल हमारी मानसिकता गन्दी तो नहीं कहूँगी बल्कि शक्की ,और नकारात्मक सोच वाली होती जा रही हैं इसके पीछे के कारण भी सभी को स्पष्ट हैं किन्तु कभी- कभी इस सोच से परे की भी सच्चाई होती है बस इसी बिंदु को ध्यान में रख कर लिखी है ये लघु कथा |बहुत बहुत आभारी हूँ सस्नेह .

Comment by Vindu Babu on June 23, 2014 at 9:29am

आपने सच कहा आदरणीया, आज हमारी मानसिकता इतनी गंदी होती जा रही है कि सकारात्मक पहलुओं तक हमारी दृष्टि ही नहीं जाती। 

बहुत सुंदर प्रस्तुतिकरण है आपका।

इसके लिए आपको ढेरों बधाइयाँ।

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 23, 2014 at 9:10am

शिज्जू भैय्या सही कहा आपने आज कल के माहौल को देखते हुए किसी पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए इसीलिये इस कथा की नायिका ने वो भाव व्यक्त किये किन्तु कभी- कभी हमारी नकारात्मक सोच भी शर्मिंदगी का कारण बन जाती है हर ऊँगली बराबर है ये भी तो नहीं सोचना चाहिए|बहुत -बहुत शुक्रिया  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 23, 2014 at 9:06am

प्रिय  मीना पाठक जी,आपको लघु कथा पसंद आई अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार | 

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