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कुंडलिया छंद - लक्ष्मण लडीवाला

कुंडलिया छंद- समाज और बेटियाँ 
(1)
सक्षम बेटी वधु बने, वधुएँ घर की लाज 
वंश बढ़ाती कोख से, हर घर करता नाज 
हर घर करता नाज, मिले जब ढेरों खुशियाँ 
जागे सकल समाज, सृजन से महके बगिया 
त्यागे बाल विवाह, अपराध है ये अक्षम 
करे पढ़ाकर ब्याह, बने समाज तब सक्षम ||
(2)

बेटी बिन क्या हो सके, विकसित कभी समाज 

बेटी आती है सदा,  लिए प्यार  का साज 
लिए प्यार का साज, हाथ दूजे का थामे 
बढे जगत की बेल, दर्द सहती जो गामे 
हो सबकी यह सोच,खुले विकास की पेटी 
तज कर नेह कुटीर, जुड़े विकास में बेटी |
(3)

दुनिया के उत्थान में, बेटी है वरदान,

बेटी जन्मी कोख से, करते कन्यादान 

करते कन्यादान, प्रेम से उसे पढाए 

उत्कट जीवन चाह, स्नेह दे मान बढाए 

कह लक्ष्मण कविराय, यही विकास का जरिया

बेटी का उत्थान, तभी हो विकसित दुनिया || 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 21, 2014 at 11:28pm

बहुत बहुत आभार आपका श्री जवाहर लाल सिंह जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 21, 2014 at 11:27pm

कुंडलिया छंद सराहने के लिए हार्दिक आभार आदरणीया कुंती मुकर्जी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 21, 2014 at 11:27pm

छंद पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री (डॉ) गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 21, 2014 at 11:18am

आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत सुन्दर , सदेश प्रद कुंडलियों की रचना  की है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ॥

Comment by Meena Pathak on June 21, 2014 at 9:04am

बहुत सुन्दर कुंडलिया .. बधाई आप को | सादर 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 20, 2014 at 3:30pm
कह लक्ष्मण कविराय,निभाकर जिम्मेदारी 
बेटी है आधार, अहम् यह दुनियादारी || 
बहुत ही सुन्दर आहवान आदरणीय लडीवाला जी!
Comment by coontee mukerji on June 19, 2014 at 11:54pm

बहुत सुंदर....आपको हार्दिक बधाई.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 19, 2014 at 12:10pm

लड़ी वाला जी

सुन्दर विचार i सुन्दर रचना i

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