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“ आज का मैच तो बड़ा रोमांचक है यार, बड़े जबर्दस्त फार्म में  है टीम...”

“अरे हाँ यार!   तेरे घर  तो मैच देखने का आनंद ही अलग है, पर यार ये अन्दर से कराहने की आवाज तेरी मम्मी की आ रही है क्या..?”

“ आने दे यार!  वो तो उनकी रोज की आदत है, बूढी जो हो गई है थोड़ी देर में सो जाएँगी. तू तो मैच देख  मैच”

 

              जितेन्द्र ’गीत’

      ( मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by vijay nikore on June 19, 2014 at 12:25pm

असंवेदनशीलता कहीं बुढ़ापे के प्रति, कहीं गरीबों के प्रति, कहीं महिलाओं/लड़कियों के प्रति...

यह मानव की मानव के प्रति असंवेदनशीलता हमारे समाज को छलनी कर रही है।

संदेश देती इस लघु कथा के लिय बधाई।

Comment by Shubhranshu Pandey on June 19, 2014 at 9:45am

सुन्दर लघु कथा....बधाई....

//तेरे घर  तो मैच देखने का आनंद ही अलग है, //.... इस आनन्द को एक् दो शब्दों मे विस्तार दे कर कथा को और कसा जा सकता है... सुधिजन विचार दे सकते हैं...

सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 10:29pm

आपकी उपस्थिति से रचना धन्य हुई, कुछ भी न कहे आदरणीया मीना दीदी. स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 10:26pm

आपकी सराहना से रचना सार्थक हुई आदरणीय जवाहर जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 10:24pm

आदरणीया राजेश दीदी, आपकी उपस्थिति व् स्नेह हमेशा मुझे संबल देता है.

यह सारी असंवेदनशीलता सिर्फ उन लोगों में होती है जो अपने शौक या सुख में अपनों के दुःख  ही भूल जाए और अपने दुखों में उन्हें भी शामिल कर लेते हों

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 10:19pm

आप ने बिलकुल सही कहा आदरणीय डा.गोपाल नारायण जी, अपराध तो हर इंसान करता है. आज आप अपने थोड़े से मनोरंजन में उस कराहना को नही सुन पा रहे जो कभी आपकी उफ़ सुनकर अपना जी जान छोड़कर भागता है. फिर तो आप किसी के लिए भी ईमानदार नही हो. आपने रचना को अपना अमूल्य समय दिया रचना धन्य हुई, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 10:11pm

आपके उत्साहवर्धक अनुमोदन हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय डा.विजय जी,स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 10:08pm

 जज्बातों को क्या पता कब समझेंगे...? या समझेंगे ही नहीं, यह कोई नही जानता आदरणीय शिज्जू जी, रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय से आभार

सादर!

Comment by Meena Pathak on June 18, 2014 at 4:27pm

...................... क्या कहूँ 


Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 12:45pm

आप सही कह रहीं है आदरणीया कुंती जी, कुछ नही कहा जा सकता क्या होगा..? रचना पर आपकी उपस्थिति से मनोबल मिलता है

आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

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