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तोड़ धैर्य के बाँध को, उफन गया सैलाब।

कुछ से उम्मीदें बढ़ीं, कुछ के टूटे ख़्वाब।।

 

लाँघी सीमा क्रोध की, ऐसा क्या आक्रोश।

भला बुरा सोचा नहीं, अंधा सारा जोश।।

 

श्रम भी काम न आ सका, काम न आया अर्थ।

बुरे कर्म की कालिमा, यत्न हुआ सब व्यर्थ।।

 

राग द्वेष का हो मुखर, जिनके मुख से राग।

शक्ति उन्हें मिल ही गई, जो-जो उगलें आग।।

 

ज्यों बिल्ली के भाग से, छींका फूटा आज।

दण्ड एक को यों मिला, दूजा पाये राज।।

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 23, 2014 at 9:00am

आदरणीय नीरज जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 23, 2014 at 9:00am

आदरणीय जितेन्द्र भाई आपका हार्दिक आभार

Comment by Neeraj Neer on May 23, 2014 at 8:19am

वाह बहुत सुन्दर दोहे आदरणीय.. 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 22, 2014 at 11:49pm

बहुत सुंदर, सार्थक दोहावली . बधाई आदरणीय शिज्जू जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 22, 2014 at 8:01pm

आदरणीय विजय सर आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 22, 2014 at 8:01pm

आदरणीया सरिता जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by vijay nikore on May 22, 2014 at 10:12am

सुन्दर दोहों के लिए बधाई, आदरणीय।

Comment by Sarita Bhatia on May 22, 2014 at 9:14am

बहुत ही सार्थक और सामयिक दोहे भाई दिली बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 21, 2014 at 9:30pm

आदरणीय सुशील सर आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 21, 2014 at 9:29pm

आदरणीय आशीष भाई रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार

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