For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?

क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?
सब परछाईं सा लगता है

कब पूछा किसने हाल मेरा
किसने मुझ को दुलराया था
हर काम यहाँ मेरा नसीब
सब कुछ हमको ही करना था

क्या बोलूँ क्या न बोलूँ ?
बस मौन साध के रहना है

घर छोड़ के आई बाबुल का
सोचा ये आँगन मेरा है
पर कोई नहीं जिसे अपना कहूँ
है देश यहाँ बेगानों का

क्या सोचूँ क्या ना सोचूँ ?
बस चंद दिनों का मेला है

सब जन करते निंदा मेरी
करना था वो करती आई
गर फिर भी पात्र हूँ निंदा की
तो सिर आँखों पर निंदा मेरी

क्या देखूँ क्या ना देखूँ ?
ये जग तो सिर्फ छ्लावा है

बस मौन रहो कर्तव्य करो
मत सोच सराहा जाएगा
रिश्तों की ठेलम-ठेला जग
अपने मन में संतोष करो

मौलिक व अप्रकाशित

कल्पना मिश्रा बाजपेई

Views: 766

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kalpna mishra bajpai on July 18, 2014 at 3:41pm

आ0 भण्डारी जी आप ने बिलकुल सही कहा आगे से ध्यान रखूंगी । बहुत शुक्रिया /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on July 18, 2014 at 3:40pm

आदरणीय भ्रमर जी बहुत बहुत आभार होंसला बढ़ाने के लिए/सादर 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 26, 2014 at 2:51pm

बस मौन रहो कर्तव्य करो
मत सोच सराहा जाएगा
रिश्तों की ठेलम-ठेला जग
अपने मन में संतोष करो


आदरणीया कल्पना जी ..बड़ा दुःख होता है ऐसे वक्त जब आप के काम नजरअंदाज किये जाएँ ...उत्साह बढाती अच्छी रचना
भ्रमर ५


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 23, 2014 at 10:05pm

आदरणीया कलपना जी , सकारात्मक विचारों को जगाता आपकी गीत रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ !! मात्रायें अलग अलग पंक्ति मे अलग अलग लग रही हैं , जिसके कारण गेयता मे कुछ कमी लग रही है ॥

Comment by kalpna mishra bajpai on May 22, 2014 at 3:14pm

आ० राजेन्द्र जी बहुत आभार आप का /सादर

Comment by kalpna mishra bajpai on May 22, 2014 at 3:13pm

आ० जितेंद्र जी हार्दिक शुक्रिया /सादर

Comment by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on May 22, 2014 at 10:48am

उम्दा अभिव्यक्ति ......................बेहतरीन प्रेरणा दायक पंक्तियां ..................बस मौन रहो कर्तव्य करो
मत सोच सराहा जाएगा
रिश्तों की ठेलम-ठेला जग
अपने मन में संतोष करो

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 22, 2014 at 10:01am

बहुत मर्मस्पर्शी रचना, हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया कल्पना जी

Comment by kalpna mishra bajpai on May 21, 2014 at 3:09pm

आ० अरुण जी हार्दिक आभार /सादर

Comment by kalpna mishra bajpai on May 21, 2014 at 3:08pm

आ० शिज्जु जी हार्दिक आभार /सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
2 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service