For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अतुकांत कविता .....प्रवृत्ति.....

एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं सुख-दुःख,
फिर क्यों लगता है -
-सापेक्ष सुख के नहले पर दहला सा दुःख ?
- सुख मानो ऊंट के मुहं में जीरा-सा ?
आखिर क्यों नहीं हम रख पाते निरपेक्ष भाव ?

प्यार-नफ़रत तो हैं सामान्य मानवी प्रवृत्ति !
फिर भी -
प्यार पर नफ़रत लगती सेर पर सवा सेर ,
प्यार कितना भी मिले दाल में नमक-सा लगता !
थोड़ी भी नफ़रत पहाड़ सी क्यों दिखती है आखिर ?

होते हैं मान-अपमान एक थाली के चट्टे-बट्टे !
मिले मान तो होता गर्व, होती छाती चौड़ी ,
और अपमान पर तिलमिला जातें हैं क्रोध से !
पढ़ा है पर भूल जाते हैं पाठ सहिष्णुता का !
क्यों नहीं दोनों को समरूप ग्रहण कर पाते हम ?

जीवन-संगीत के दो सुर हैं हार-जीत !
एक की हार में होती दूजे की जीत निहित !
जीतते हैं तो आसमान महसूसते हैं मुट्ठी में ,
मिले हार तो चाहते हैं धरती में समा जाना !
आखिर क्यों -
हार-जीत की कसौटी पर उतर जाता रंग हमारा ?

कोई नही होता सिर्फ अच्छा या सिर्फ बुरा !
अच्छाई और बुराई -
एक म्यान में समायी रहतीं हैं दो तलवारों सी !
लेकिन सुन बड़ाई अपनी असीमित होता है आनंद ,
हो बुराई तो हो जाती है प्रज्ज्वलित क्रोधाग्नि !
आखिर क्यों प्रशंसा पर भारी पड़ जाती हैं निंदा ?

सविता मिश्रा
१४/२/२०१२
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 1204

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by savitamishra on April 28, 2014 at 11:22pm

जी जरुर ...कोशिश करेगें ...वैसे एक बार करने की किये भी पर भावों को लिखना सरल है काव्य रूप देना शायद कठिन ..फिर भी समय और दिल करते ही इस पर मेहनत करेगें ...अच्छी कर पाए तो खुश होगी हमे ...सादर आभार आपका


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 28, 2014 at 8:34pm

जब तक जीवन की डोर मन के हाथ में रहती है, मन दो ध्रुवों के मध्य डोलता सुख-दुख , हार-जीत,  प्यार नफरत, मान-अपमान में कभी आनंदित तो कभी व्यथित होता रहता है..

//क्यों नहीं हम दोनों कों एक-सा ले पाते है ,//

मन को साध कर हर स्थिति में समभाव रह पाना एक बहुत बड़ी चुनौती होता है.

इन बिन्दुओं पर सोचती आपकी अभिव्यक्ति के लिए बधाई ...

पर इस अभिव्यक्ति पर आदरणीय बृजेश जी के कहे का पूर्णतः समर्थन करती हूँ... यह अभिव्यक्ति गद्यात्मक ही है इसे कविता के प्रारूप में ढालने के लिए कुछ और समय की दरकार है.

Comment by savitamishra on April 21, 2014 at 12:50pm

bahut bahut shukriya mukesh bhai apka

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 21, 2014 at 9:18am

आदरणीया सविता जी
तक़रीबन हर इंसान अपनी जिंदगी में हर दिन (शायद हर पल) इन सवालों के बीच झूलता रहता है.. अध्यात्म का रास्ता भी इन्ही सवालों के बीच से है..
हृदयस्पर्शी लिखा है आपने
आपकी सोच को प्रणाम

Comment by savitamishra on April 20, 2014 at 11:29pm
Comment by बृजेश नीरज on April 20, 2014 at 8:44am

हम अपने भाव, विचार गद्य और पद्य दोनों में व्यक्त करते हैं. अतुकांत लिखते समय यह सावधानी आवश्यक है कि अपनी बात किस तरह प्रस्तुत की जाए कि वह गद्य न लगे! आपकी यह रचना लेख की तरह है. इस बिंदु पर प्रयास की आवश्यकता है. कहन को धारदार बनाने का प्रयास करें. सपाटबयानी रचना को और भी गद्यात्मक बनाती है!

इस अच्छे प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 20, 2014 at 12:27am

आपने मेरे विचारों को इतना मान दिया ,आभार आपका आदरणीया सविता जी

Comment by savitamishra on April 19, 2014 at 7:50pm

C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi"chachaji bahut bahut shukriya dil se

Comment by savitamishra on April 19, 2014 at 7:49pm

गिरिराज भंडारी bhaiya saadr namste ....bahut bahut sukriya apka dil se

Comment by savitamishra on April 19, 2014 at 7:48pm

जितेन्द्र 'गीत bhai aap bilkul sahi kahen ..kuchh jyada nahi kahen balki sachchai hi kahen ...abhar apka jo aapne itna vistaar se samjha aur samay diya samjhaane ke liye

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service