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कविता -

शरीर में चुभे हुए काँटे

जो शरीर को छलनी करते हैं;

वह टीस 

जो दिल की धड़कन

साँसों को निस्तेज करती है

 

यह तुम्हें आनंद नहीं देगी

प्रेम का कोरा आलाप नहीं यह

वासना में लिपटे शब्दों का राग नहीं

छद्म चिंताओं का दस्तावेज़ नहीं

इसे सुनकर झूमोगे नहीं

 

यह तुम्हें गुदगुदाएगी नहीं

सीधे चोट करेगी दिमाग पर

तड़प उठोगे

यही उद्देश्य है कविता का

 

रात के स्याह-ताल पर 

नृत्य करने वाले नर-पिशाचों के लिए

नहीं होती कविता

 

कविता पैदा करती है

जिंदा लोगों में झुरझुरी

एक सिहरन!

           - बृजेश नीरज 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by बृजेश नीरज on April 18, 2014 at 8:42am

आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by coontee mukerji on April 18, 2014 at 1:13am

बाप रे.....बृजेश जी कितनी सहजता आ गयी है आपकी लेखनी और वाणी में. सरल होना कितना कठिन होता है...सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 17, 2014 at 11:41pm

बहुत ही सशक्त पंक्तियाँ, सच कहा आपने आदरणीय बृजेश जी कविता जिन्दा लोगो में सिहरन पैदा करती है. हर कवि भावुक होता है परन्तु हर भावुक कवि नही . बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by बृजेश नीरज on April 17, 2014 at 8:59pm

आदरणीय नादिर साहब आपका बहुत-बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on April 17, 2014 at 8:59pm

आदरणीय चन्द्र शेखर पाण्डेय जी,

//पहले भाग में आपने कविता को एक ही साथ काँटों और टीस, की उपमा दी है, जबकि इनमें एक एक पुल्लिंग है और एक स्त्रीलिंग!!//

इसमें दिक्कत क्या है, यह मैं समझ नहीं सका! अपनी आपत्ति को स्पष्ट करने का कष्ट करें! 

//कविता के संज्ञानात्मक उद्देश्य को आपने काफी वरीयता दी है, वैसे भावात्मक पक्ष को भी नजरंदाज नहीं करना चाहिए।//

मैंने भावनात्मक पक्ष को नज़रअंदाज़ किया है क्या?

अपनी सीमित समझ के अनुसार ही इस रचना में अपनी बात कहने का प्रयास किया है. आपके सुझावों की प्रतीक्षा है!

रचना पर आपकी उपस्थिति के लिए आपका हार्दिक आभार! 

Comment by बृजेश नीरज on April 17, 2014 at 8:52pm

आदरणीय चंद्रेश जी बहुत आभार आपका!

Comment by बृजेश नीरज on April 17, 2014 at 8:51pm

आदरणीय मुकेश जी आपका बहुत-बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on April 17, 2014 at 8:51pm

आदरणीय लडीवाला जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on April 17, 2014 at 8:50pm
आदरणीया गीतिका जी आपका हार्दिक आभार!आपके अनुमोदन से बल मिला!
Comment by नादिर ख़ान on April 17, 2014 at 3:48pm

आदरणीय बृजेश जी,वाकई आपकी रचना सिहरन पैदा कर रही है। सार्थक रचना के लिए बधाई ...

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