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बह्र : २२ २२ २२ २

जीने का या मरने का
ढंग अलग हो करने का

सबका मूल्य बढ़ा लेकिन
भाव गिर गया धरने का

आज बड़े खुश मंत्री जी
मौका मिला मुकरने का

सिर्फ़ वोट देने भर से
कुछ भी नहीं सुधरने का

कूदो, मर जाओ `सज्जन'
नाम तो बिगड़े झरने का
-
(मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sachin Dev on April 15, 2014 at 2:59pm

सिर्फ़ वोट देने भर से

कुछ भी नहीं सुधरने का........ वाह आदरणीय धर्मेन्द्र जी बहुत सुंदर गजल कही हार्दिक बधाई आपको ! 

Comment by Meena Pathak on April 15, 2014 at 2:33pm

बहुत सुन्दर ,,,बधाई 

Comment by भुवन निस्तेज on April 15, 2014 at 2:01pm

इस अंदाजे बयाँ का कोई सानी नहीं आदरणीय...

बधाई स्वीकार करें....

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 15, 2014 at 1:21pm

आदरणीय धर्मेन्द्रजी
लाजवाब ...

सिर्फ़ वोट देने भर से

कुछ भी नहीं सुधरने का

क्या कहने..बहुत खूब

कृपया ध्यान दे...

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