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ग़ज़ल - ' कहीं है आग जलती सी ' ( गिरिराज भंडारी )

1222     1222     1222      1222   

 

कहीं कुछ दर्द ठहरा सा , कहीं है आग जलती सी

कभी सांसे हुई भारी , कभी हसरत मचलती सी

कभी टूटे हुये ख़्वाबों को फिर से जोड़ता सा मै

कभी भूली हुई बातें मेरी यादों में चलती सी

कभी होता यक़ीं सा कुछ , कहीं कुछ बेयक़ीनी है

तुझे पाने की उम्मीदें कभी है हाथ मलती सी

कभी महफिल में तेरी रह के मै तनहा सा रहता हूँ

कभी तनहाइयों में संग पूरी भीड़ चलती सी

कभी बेबात ही ये ज़िंदगी वीरान लगती है

कभी बेजान साया देख के थोड़ी बहलती सी

कभी ये लड़खड़ाती है बहुत हमवार राहों मे

कभी ये ज़िन्दगी काटों में भी घिर के सँभलती सी

कभी ये शांत बहती है कोई गहरी नदी हो ज्यूँ

पहाड़ी सी नदी जैसी कभी बेहद उछलती सी  

*******************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 11, 2014 at 6:05pm

आदरणीय चन्द्र शेखर भाई , आपका शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 11, 2014 at 6:04pm

आदरणीय, सचिन भाई , आपका आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 11, 2014 at 6:04pm

आदरणीया सरिता जी , आपका तहे दिल से शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 11, 2014 at 6:03pm

आदरणीय , श्याम भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 11, 2014 at 6:02pm

आदरनीया राजेश जी , आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिये आपका तहे दिल से आभारी हूँ !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 11, 2014 at 6:00pm

आदरणीय शिज्जू भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका शुक्रिया !! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 11, 2014 at 5:59pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on April 11, 2014 at 5:33pm
जय हो
Comment by Sarita Bhatia on April 11, 2014 at 5:19pm

आदरणीय गिरिराज जी शानदार गजल के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Sachin Dev on April 11, 2014 at 12:59pm

आदरणीय गिरिराज जी, इस शानदार गजल पर दिली मुबारकबाद आपको ! 

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