For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222    1222     1222     1222

****
सिखाते  क्यों  हमें  हो  तुम वही इतिहास की बातें
दिलों में  घोलकर  नफरत  नये  विश्वास  की बातें

*
बताओ  घर   बनेगा  क्या  हमारा   आसमानों  में
जमीनें  छीन   के   करते  सदा  आवास  की  बातें

*
कहाँ  से  हो  कठौती  में   हमारे   गंग  की  धारा
बिठाई  ना  मनों  में जब  कभी रविदास  की बातें

*
बहाकर  अश्क  भी  यारो  कहाँ  दुख  दूर  होते हैं
गमों  से  पार  पाने  को  करो   परिहास  की बातें

*
हमारे  देवता  जो  हैं  करम  तक  आ  न  पाये हैं
दिया पतझड़  हमेशा ही,  कही  मधुमास की बाते

*
हुआ  होगा  कभी  मजनू  जिसे  था प्यार रूहों से
मगर इस युग चली आयी  सदा सहवास की बातें

*
मुझे लगती नहीं अच्छी  'मुसाफिर’ फितरतें तेरी
अगर बरसात  भी हो तो  करोगे  प्यास की बातें

मैलिक व अप्रकासित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

Views: 697

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2014 at 10:24am

आदरणीय बन्दना जी आपने ग़ज़ल पर गौर फ़रमाया और प्रशंशा की , इसके लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2014 at 10:22am

आदरणीय शिज्जू भाई ग़ज़ल पर आपकी टिप्प्णी से संतोष हुआ कि इस बार कोई कमी नहीं रही .हार्दिक धन्यवाद

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2014 at 10:20am

आदरणीय कुंती बहन उत्साहवर्धन के लिए आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2014 at 10:20am

आदरणीय भुवन भाई ग़ज़ल की प्रशंसा और असआरो के विश्लेषण के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद .

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 1, 2014 at 10:20am
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी! बहुत ही बेहतरीन गजल है। बधाई।
Comment by vandana on April 1, 2014 at 6:43am

*
कहाँ  से  हो  कठौती  में   हमारे   गंग  की  धारा
बिठाई  ना  मनों  में जब  कभी रविदास  की बातें

*
बहाकर  अश्क  भी  यारो  कहाँ  दुख  दूर  होते हैं
गमों  से  पार  पाने  को  करो   परिहास  की बातें

बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 31, 2014 at 6:26pm

आदरणीय लक्ष्मणजी इस गज़ल के लिये बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by coontee mukerji on March 31, 2014 at 5:09pm

कहाँ  से  हो  कठौती  में   हमारे   गंग  की  धारा
बिठाई  ना  मनों  में जब  कभी रविदास  की बातें *......बहुत सुंदर.

Comment by भुवन निस्तेज on March 31, 2014 at 8:10am

सिखाते  क्यों  हमें  हो  तुम वही इतिहास की बातें
दिलों में  घोलकर  नफरत  नये  विश्वास  की बातें Fabulous

*
बताओ  घर   बनेगा  क्या  हमारा   आसमानों  में
जमीनें  छीन   के   करते  सदा  आवास  की  बातें The real picture of society and politics

*
कहाँ  से  हो  कठौती  में   हमारे   गंग  की  धारा
बिठाई  ना  मनों  में जब  कभी रविदास  की बातें makes mespeechless

*
बहाकर  अश्क  भी  यारो  कहाँ  दुख  दूर  होते हैं
गमों  से  पार  पाने  को  करो   परिहास  की बातें simply great philosophy

*
हमारे  देवता  जो  हैं  करम  तक  आ  न  पाये हैं
दिया पतझड़  हमेशा ही,  कही  मधुमास की बाते just great!

*
हुआ  होगा  कभी  मजनू  जिसे  था प्यार रूहों से
मगर इस युग चली आयी  सदा सहवास की बातें bitter reality

*
मुझे लगती नहीं अच्छी  'मुसाफिर’ फितरतें तेरी
अगर बरसात  भी हो तो  करोगे  प्यास की बातें what an expression!

Congratulations sir!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 30, 2014 at 5:32pm

आदरणीय भाई शुशील जी ग़ज़ल कि प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  दिनेश जी,  बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर बागपतवी जी,  उम्दा ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी,  बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। मैं हूं बोतल…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। गुणिजनों की इस्लाह तो…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश  जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया रिचा जी,  अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए।…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
4 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा जी, बहुत धन्यवाद। "
6 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी, बहुत धन्यवाद। "
6 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, आप का बहुत धन्यवाद।  "दोज़ख़" वाली टिप्पणी से सहमत हूँ। यूँ सुधार…"
6 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service