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दोहे गर्मी के/कल्पना रामानी

चुपके-चुपके चैत ने, घोला अपना रंग।

और बदन की स्वेद से, शुरू हो गई जंग।

 

पल-पल तपते सूर्य की, ऐसी बिछी बिसात।

हर बाज़ी वो जीतकर, हमें दे रहा मात।

 

लू लपटों ने कर लिया, दुपहर पर अधिकार।

दिन भर तनकर घूमता, दिनकर चौकीदार।

 

हरियाली गुम हो गई, प्रखर हो गई धूप।

पीत वर्ण अब हो चला, उद्यानों का रूप।  

 

व्याकुल पंछी फिर रहे, सूखे कंठ उदास,

जाएँ कहाँ निरीह ये, बुझे किस तरह प्यास।

 

तरण ताल सूखे सभी, बालक हैं गमगीन।

वन जीवन प्यासा फिरे, जल बिन तड़पी मीन।

 

नमी हवा खोने लगी, मुरझाए तृण पात।

रातों की ठंडक घटी, गुमी शबनमी प्रात।

 

बात “कल्पना” मानिये, सेहत रखें बहाल,

सुबह-शाम  टहला करें, दिन बीते खुशहाल।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 23, 2014 at 4:10pm

हालां  कि सुबह सुबह होता ठण्ड का एहसास 

पढकर दोहे आपके लगता  गर्मी आ गयी पास 

सादर बधाई आदरणीया जी 

Comment by coontee mukerji on March 23, 2014 at 12:00pm

बहुत सुंदर दोहावली....कल्पना जी लगता है अब गरमी का मौसम अच्छा बीतेगा.साधुवाद.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 23, 2014 at 11:49am

//बात “कल्पना” मानिये, सेहत रखें बहाल,

सुबह-शाम  टहला करें, दिन बीते खुशहाल।//

 

यूं तो सभी दोहे अच्छे लगे, अंतिम दोहा मुझे बहुत पसंद आया, दोहे मौसम का एहसास बाखूबी करा करा रहे हैं,बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें आदरणीया इस प्रस्तुति पर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 23, 2014 at 9:16am

वाह्ह वाह्ह्ह आपकी दोहावली ने सचमे मौसम बदल दिया है क्या सम सामयिक दोहे रचे हैं आदरणीया कल्पना जी, एक से बढ़कर एक दोहा हार्दिक बधाई आपको. 

Comment by kalpna mishra bajpai on March 23, 2014 at 12:52am

आप ने दी जो इतने प्यार से टहलने के लिए कहा है कबीले तारीफ है बधाई आप  को सादर :)

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