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ग़ज़ल- सारथी || आशिकों की आँख का मोती ग़ज़ल ||

आशिकों की आँख का मोती ग़ज़ल

देखिए , हंसती कभी रोती ग़ज़ल/१ 

है नफ़ासत औ मुहब्बत से पली

तरबियत के बीज भी बोती ग़ज़ल/२ 

इन लतीफ़ों –आफ़रीं के दरम्यां

आलमी मेयार को खोती ग़ज़ल/३ 

मुफ़लिसी , ये भूख औ तश्नालबी

देख ये मंजर, कहाँ सोती ग़ज़ल/४ 

‘सारथी’ जाया न नींदें कीजिये

रतजगा करके कहाँ होती ग़ज़ल/५

.....................................................

सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित  

अरकान: २१२२ २१२२  २१२    

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Comment by Saarthi Baidyanath on March 4, 2014 at 10:48am

आदरणीया Meena Pathak जी , आपके स्नेहिल शब्दों के लिए ह्रदय से आभारी हूँ ! बहुत बहुत धन्यवाद आपका ! स्नेह देते रहिएगा !

Comment by Saarthi Baidyanath on March 4, 2014 at 10:47am

जनाब शिज्जू शकूर साहब , इन्तेहाई शुक्रगुजार हूँ ! शुक्रिया बहुत बहुत ! 

इक तसव्वुर के समंदर से उठी
ये मुसल्सल बहती लहरों सी ग़ज़ल....ये हुई न बात !...वाह :)

Comment by Meena Pathak on March 4, 2014 at 10:14am
Behtareen gazal ...Badhai

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 4, 2014 at 9:24am

भाई बैद्यनाथजी बेहतरीन गज़ल है वाह बहुत बहुत बधाई। अर्ज किया है-
इक तसव्वुर के समंदर से उठी
ये मुसल्सल बहती लहरों सी ग़ज़ल

Comment by Saarthi Baidyanath on March 4, 2014 at 8:43am

बहुत बहुत आभार आदरणीय  गिरिराज भंडारी जी ! सादर नमन आपको ! आपने नाचीज को बहुत कुछ दिया है ...प्रणाम !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 3, 2014 at 7:28pm

आदरणीय बैद्यनाथ भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है , आपको दिली बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

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