For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मोहब्बत के कलैंडर में कभी इतवार ना आए..

मुक्तक

फकत मेरे ​सिवा तुमको किसी पर प्यार ना आए,
मेरे गीतों में तेरे बिन कोई अशआर ना आए,
मिलन होता रहे तब तक कि जब तक चांद तारे हैं
मोहब्बत के कलैंडर में कभी इतवार ना आए।।

-------------------------------------------

तुम्हारे साथ जो गुजरे वो लम्हे हम नहीं भूले,
मिलन की वो घडी और फिर विरह के गम नहीं भूले,
ये बरसों बाद जाना है मोहब्बत का सबब मैंने,
तुम्हें भी हम नहीं भूले, हमें भी तुम नहीं भूले।।

-----------------------------------------

मैं जब भी प्रेम लिखता हूं वफाएं छूट जाती हैं
हसीं मौसम जो लिखता हूं फिजाएं रूठ जाती हैं,
तुम्हें बतला रहा हूं मैं स्वयं के दर्द का किस्सा
उन्हें आवाज देता हूं सदाएं टूट जाती हैं।।

--------------------------------------

जमाने में मोहब्बत के नशे में चूर हैं हम भी,
नाम बदनाम हो कितना मगर मशहूर हैं हम भी.
जमीं की याद में आंसू बहाते आसमां सुन लो,
जमीं से दूर गर तुम हो, किसी से दूर हैं हम भी।।

                                             

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1065

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2014 at 6:40pm

आदरणीय अतुल भाई , सुन्दर् मुक्तकों की रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥

मेरे गीतों में तेरे बिन कोई अशआर ना आए,-   इस पंक्ति मे गीतों की जगह ग़ज़लों कहना जादा अच्छा नही होगा क्या ?  आगे आपने अशआर शब्द उपयोग किया है ॥

Comment by atul kushwah on March 1, 2014 at 5:08pm

आदरणीय भाई शकील जमशेदपुरी जी, मेरी इन नादान कोशिशों को जब आप जैसे लोगों का मार्गदर्शन मिलता है तो लगता है कि सही रास्ते पर हूं। मैंने आपको भी पढा है, मेरी नजर में आप हासिले परिपक्व हैं। आज मुझे आपका मार्गदर्शन और ज्ञानदर्शन मिला, बहुत प्रसन्नता हुई। आज आपसे काफी कुछ सीखने को मिला। उम्मीद करता हूं कि आगे भी स्नेह बनाए रखेंगे। सादर— अतुल

Comment by atul kushwah on March 1, 2014 at 4:56pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी, इस अबोध कोशिश को सराहने के लिए बहुत—बहुत आभार। सादर—अतुल

Comment by atul kushwah on March 1, 2014 at 4:55pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, मुक्तक पर आपकी प्रशंसा पाकर बेहद अच्छा लगा। इस तोतले प्रयास को सराहने के लिए तहे दिल से आभार। सादर—अतुल

Comment by शकील समर on March 1, 2014 at 3:10pm

वाह—वाह! क्या कहने अतुल जी। क्या रवां दवां मुक्त हुए हैं। लय में पढ़ता चला गया तो आनंद आ गया।

कुछ बातें हैं जो अपनी ओर से कहना चाहूंगा।

//नाम बदनाम हो कितना मगर मशहूर हैं हम भी//

ये मिसरा बह्र में नहीं है। अगर आप चाहें तो इसे ऐसे कर सकते हैं।

भले बदनाम हों लेकिन, बहुत मशहूर हैं हम भी


इसी तरह दूसरे मुक्तक में 'हम' और 'गम' के साथ 'तुम' काफिया खटक रहा है। अंतिम मिसरे को आप यूं कर दें तो कैसा रहेगा?

हमें भी तुम नहीं भूले, तुम्हें भी हम नहीं भूले

(विशेष : मैंने जो बातें कही वह मेरी संक्षिप्त जानकारी पर आ​धारित है। क्षमा याचना सहित।)

Comment by annapurna bajpai on March 1, 2014 at 1:22pm

बहुत सुंदर मुक्तक , हर मुक्तक अपने आप मे अलग है , बधाई आपको । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2014 at 11:36am

मैं जब भी प्रेम लिखता हूं वफाएं छूट जाती हैं
हसीं मौसम जो लिखता हूं फिजाएं रूठ जाती हैं,
तुम्हें बतला रहा हूं मैं स्वयं के दर्द का किस्सा
उन्हें आवाज देता हूं सदाएं टूट जाती हैं।।

---क्या कहने क्या कहने वाह्ह्ह्हह वैसे हर मुक्तक शानदार है ये तो बहुत ही बढ़िया लगा 

जमीं की याद में आंसू बहाते आसमां सुन लो,
जमीं से दूर गर तुम हो, किसी से दूर हैं हम भी।।------सुभानल्लाह ,दिल छू गयी ये पंक्तियाँ 

मोहब्बत के कलैंडर में कभी इतवार ना आए।।------आमीन ...वाह्ह्ह्ह 

वाह अतुल कुशवाह जी मजा आ गया आके ये मुक्तक/शाएरी पढ़ कर क्या लय ,भाव ,शब्द सब काबिले तारीफ हैं तहे दिल से दाद कबूलें 

 

      

Comment by Shyam Narain Verma on February 28, 2014 at 5:37pm
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
Comment by atul kushwah on February 28, 2014 at 4:18pm

आदरणीय कल्पना जी, इस तोतले प्रयास को सराहने के लिए आभार। सादर—अतुल

Comment by atul kushwah on February 28, 2014 at 4:14pm

आदरणीय नादिर सर, आपका समर्थन मिला, बहुत आभार। सादर—अतुल

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
13 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
22 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
22 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service