For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

   मन बौराया

कंगना खनका

मन बौराया

ऐसा लगता फागुन आया ।

रूप चंपयी

पीत बसन

फैली खुशबू

ऐसा लगता

यंही कंही  है चन्दन वन ।

पागल मन

उद्वेलित करने

अरे कौन चुपके से आया ?

पनघट पर

छम छम कैसा यह !

कौन वहाँ रह – रह बल खाता ?

मृगनयनी वह परीलोक की

या है वह  –

सोलहवां सावन !

मन का संयम

टूटा जाये

देख देख यौवन गदराया ।

कंगना खनका

मन बौराया

ऐसा लगता फागुन आया ।

  ---- मौलिक एवं अप्रकाशित ---

Views: 746

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 23, 2014 at 7:27pm

आदरणीय ब्रह्मचारी जी  मन को छू लेने वाली रचना ..इसे गुनगुनाते हुए पढने में बहुत आनद आया ..प्रबह्मयी इस रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर

Comment by annapurna bajpai on February 23, 2014 at 12:18am

सुंदर रचना , बधाई आपको आदरणीय ब्रह्मचारी जी । 

Comment by ram shiromani pathak on February 22, 2014 at 4:28pm

अहा आनंद आ गया बहुत ही सुन्दर रचना,सुन्दर प्रवाह आदरणीय ,हार्दिक बधाई आपको  //सादर

Comment by Shyam Narain Verma on February 22, 2014 at 3:56pm
बहुत बढ़िया रचना आदरणीय .......
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 22, 2014 at 12:16pm

कंगना खनका

मन बौराया

ऐसा लगता फागुन आया ।----वाह ! बहुत खूब | सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई श्री ब्रह्मचारी जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 22, 2014 at 9:01am

फाल्गुन के स्वागत में बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की आपने आदरणीय ब्रह्मचारी जी हार्दिक बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service