For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"भई वाह, तुम्हारे हरे भरे केक्टस देख कर तो मज़ा ही आ गया."
"बहुत बहुत शुक्रिया."
"लेकिन पिछले महीने तक तो ये मुरझाए और बेजान से लग रहे थे"
"बेजान क्या, बस मरने ही वाले थे."
"तो क्या जादू कर दिया इन पर ?"
"घर के पिछवाड़े जो बड़ा सा पेड़ था वो पूरी धूप रोक लेता था,  उसे कटवाकर दफा किया, तब कहीं जाकर बेचारे केक्टस हरे हुए."

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 938

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vandana on February 22, 2014 at 7:27am

गहरा व्यंग्य ..... क्या प्रकृति क्या समाज चारों तरफ यही स्थिति है ,बहुत शानदार लघुकथा आदरणीय प्रभाकर सर 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 21, 2014 at 3:55pm

आ० विजय निकोर जी, आपकी सराहना का दिल से शुक्रिया।  

Comment by vijay nikore on February 21, 2014 at 2:58pm

गूढ़ अर्थ लिए, सुन्दर संदेश देती इस लघु कथा के लिए आपको हार्दिक बधाई, आदरणीय भाई योगराज जी।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 21, 2014 at 11:22am

रचना पसंद करने और सराहने के लिए हार्दिक आभार भाई जीतेन्द्र जी.              


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 21, 2014 at 11:22am

खिज़ा से घबरा जाते तो कोई बात नहीं गुमनाम साहिब, यहाँ तो लोग बहार से बहार से घबरा कर खिज़ां खरीद रहे हैं.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 21, 2014 at 11:22am

रचना की इतने हृदयग्राही शब्द में प्रशंसा करने हेतु सच्चे अंतर्मन से धन्यवाद आ० गिरिराज भंडारी जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 21, 2014 at 11:21am

शायद भारत के इंडिया होते जाने का किस्सा भी तो कुछ ऐसा ही है न ? आपके उत्साहवर्धन का दिल से शुक्रिया भाई धर्मेन्द्र सिंह जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 21, 2014 at 11:21am

सादर धन्यवाद आ० सरिता भाटिया जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 21, 2014 at 11:21am

सादर धन्यवाद आ० अन्नपूर्णा जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 21, 2014 at 11:21am

लघुकथा ने आपको छुया, यह जान कर बहुत अच्छा लगा. हार्दिक आभार भाई राहुल देव जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service