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जो छत हो आसमां सारा यहाँ ऐसा मकाँ इक हो [गजल]

दिलों में रंजिशें ना हों यहाँ ऐसा जहाँ इक हो
जो छत हो आसमां सारा यहाँ ऐसा मकाँ इक हो /


नया हर जो सवेरा हो मिले सुख शांति हर घर में

मिटे ना वक्त के हाथों जो ऐसा आशियाँ इक हो /


बुराई लोभ भ्रष्टाचार धोखा दूर हो कोसों
हो केवल प्यार हर घर में बसेरा अब वहाँ इक हो /


मिले केवल सुकूं अब और हो मुस्कान होठों पर

घुली मिश्री हो बातों में यहाँ ऐसी जुबाँ इक हो /


निशानी अब हसीं यादों की लम्हा लम्हा मुस्काये

हों चर्चे कुल जहां अपने ही ऐसी दास्ताँ इक हो /

नहीं कुछ चाहिए मुझको दे दो विश्वास तुम इतना
गवाही माँगे जग सारा वहाँ तेरा बयाँ इक हो /

सनम खातिर जो मरते वो कहें खुद ही को बांका इक
मरे जो देश की खातिर वही बांका जवाँ इक हो /

................मौलिक व अप्रकाशित...............

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 24, 2014 at 9:48pm

दिलों में रंजिशें ना हों यहाँ ऐसा जहाँ इक हो 
जो छत हो आसमां सारा यहाँ ऐसा मकाँ इक हो /............वाह बहुत सुन्दर चाह 

सुन्दर ग़ज़ल हुई है ..हार्दिक बधाई 

Comment by Sarita Bhatia on February 21, 2014 at 8:35pm

आदरणीय ब्रिजेश जी हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on February 21, 2014 at 8:34pm

शुक्रिया भाई लक्ष्मण धामी जी 

Comment by Sarita Bhatia on February 21, 2014 at 8:34pm

आदरणीय जितेन्द्र जी हार्दिक आभार 

Comment by बृजेश नीरज on February 21, 2014 at 7:22pm

 सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2014 at 11:18am

आदरणीया सरिता जी, बहुत सुंदर गजल हुई . हार्दिक बधाई .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 20, 2014 at 10:53am

बहुत सुंदर गजल आदरणीया सरिता जी, हार्दिक बधाई आपको

Comment by Sarita Bhatia on February 20, 2014 at 10:04am

भाई अमित जी हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on February 20, 2014 at 10:03am

हार्दिक आभार सारथी जी आपकी उत्साहित प्रतिक्रिया से गजल सफल हुई 

Comment by अमित वागर्थ on February 19, 2014 at 10:25pm

बहुत बढ़िया गजल बधाई आपको

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