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तेरी कुएँ सी प्यास

तेरी कुएँ सी प्यास
तेरी अघोरी भूख
भिखारन, तू नित्य मेरे आँगन में आती
एक धमकी
एक चुनौती
तेरे आशीष में होती
घबराकर मैं तेरी तृष्णा पालती.
तू मेरी धर्मभीरूता को खूब पहचानती
और, मेरी सहिष्णुता का गलत मतलब निकालती.

‘’दे अपना हाथ तुझे उबार दूँ.’’
तूने तड़प कर दुहाई दी
अपने कुनबे की.
भिखारन! तेरे कितने नाज़
तेरे कुकुरमुत्ते से उगते परिवार
गोंद से चिपके तेरे रीति रिवाज़

छोड़ अब माँगने की परम्परा.
काम कर, कुछ काम कर
चौका बासन कपड़े लत्ते धो
स्वाभिमान की रोटी पका
पर तू माने कब मेरी बात
मैं तुझे सहने पर मज़बूर.

रोज़ के उपदेशों से तंग आकर
एक दिन तूने कहा-
‘’माना कि नदी के होते दो किनार हैं
तू मालकिन मैं भिखारिन
तू दे कर माँगती
मैं माँगकर देती.’’ इतना कह
चल दी वह दूसरी गली मुस्काती
अपनी ही कथन से मात खाती
ठगी सी मैं रह गयी खड़ी.


(मौलिक व अप्रकाशित रचना)

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Comment by annapurna bajpai on January 30, 2014 at 5:00pm

आदरणीया कुंती दीदी बहुत सुंदर देती रचना , bahutबहुत बधाई आपको । 

Comment by Sarita Bhatia on January 30, 2014 at 4:06pm

वाह क्या बात कह दी कुंती दीदी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 30, 2014 at 4:00pm

आदरणीया कुंती जी , सच बात है , हर कोई भिखमंगा ही है , कोई किसी से मांगता है तो कोई किसी से !! बहुत सुन्दर रचाना के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by pawan amba on January 30, 2014 at 1:09pm

तेरे कुकुरमुत्ते से उगते परिवार
गोंद से चिपके तेरे रीति रिवाज़

तू दे कर माँगती
मैं माँगकर देती.’’ इतना कह   bahut sundar...

Comment by Shyam Narain Verma on January 30, 2014 at 10:51am
भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... 
Comment by vandana on January 30, 2014 at 7:23am

तू मालकिन मैं भिखारिन
तू दे कर माँगती
मैं माँगकर देती.’’ 

शानदार रचना आदरणीया बहुत२ बधाई 

Comment by Meena Pathak on January 29, 2014 at 8:11pm

’माना कि नदी के होते दो किनार हैं
तू मालकिन मैं भिखारिन
तू दे कर माँगती
मैं माँगकर देती.’’ इतना कह
चल दी वह दूसरी गली मुस्काती
अपनी ही कथन से मात खाती 
ठगी सी मैं रह गयी खड़ी................. बहुत सुन्दर दी , बहुत बहुत बधाई आप को | सादर 

Comment by Neeraj Neer on January 29, 2014 at 7:28pm

बहुत सुन्दर ...माना कि नदी के होते दो किनार हैं
तू मालकिन मैं भिखारिन
तू दे कर माँगती
मैं माँगकर देती... क्या खूब कहा है 

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