For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

बहर-ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽ
.
झील के पानी में गिर के चाँद मैला हो गया।
स्वाद मीठी नींद का कड़वा-कसैला हो गया॥
.
दो घड़ी भी चैन से मैं साँस ले पाता नहीं,
यूँ तुम्हारी याद का मौसम विषैला हो गया।
.
सभ्यता के औपचारिक आवरण से ऊब कर,
आदमी का आचरण फिर से बनैला हो गया।
.
आँख में मोती नहीं बस वासना की धूल है,
प्यार देखो किस क़दर मैला-कुचैला हो गया।
.
हर किसी को सादगी के नाम से नफ़रत हुई,
कल जिसे कहते थे मजनूँ,आज लैला हो गया।
.
खेत-खलिहानों की लज़्ज़त कंकरीटों में कहाँ,
हर नई पीढ़ी का बचपन बंद थैला हो गया॥
.
-मौलिक एवं अप्रकाशित।
-21.01.2014

Views: 731

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on January 26, 2014 at 5:31pm

सभ्यता के औपचारिक आवरण से ऊब कर,
आदमी का आचरण फिर से बनैला हो गया।..

 

खेत-खलिहानों की लज़्ज़त कंकरीटों में कहाँ,
हर नई पीढ़ी का बचपन बंद थैला हो गया.... वाह ... बहुत खूब हार्दिक बधाई आपको रवि प्रकाश जी .

Comment by बसंत नेमा on January 25, 2014 at 11:12am

बहुत सुन्दर रवि जी बेहतरीन गजल के लिये बधाई ...

Comment by Ravi Prakash on January 25, 2014 at 10:01am
आ॰ लक्ष्मण जी, आपको रचना अच्छी लगी, जान कर मन को असीम आनंद प्राप्त हुआ। स्नेह बनाए रखें।
Comment by Ravi Prakash on January 25, 2014 at 9:59am
आ॰ वंदना जी, सराहना तथा सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद। मैं इस पंक्ति पर और शब्द पर कार्य कर रहा हूँ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2014 at 6:23am

आदरणीय भाई रवि प्रकाश जी एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई .

सभ्यता के औपचारिक आवरण से ऊब कर,
आदमी का आचरण फिर से बनैला हो गया।

मानव के बदलते आचरण पर खूब चोट की है .

Comment by vandana on January 25, 2014 at 5:58am

सभ्यता के औपचारिक आवरण से ऊब कर,
आदमी का आचरण फिर से बनैला हो गया।

बहुत खूब आदरणीय रवि जी बहुत अच्छी ग़ज़ल 

एक छोटा सा सुझाव है

 खेत-खलिहानों की लज़्ज़त कंकरीटों में कहाँ,
पीढ़ियों का बचपना इक बंद थैला हो गया॥......में बचपना शब्द पर ध्यान दिया जाए तो इसके दो अर्थ हैं एक तो बचपन जिसे बच्चों से जोड़ा जाये तो सही है आपने भी उसी अर्थ में लिया है लेकिन यही शब्द बड़ों के साथ जोड़ें तो बुद्धि की अपरिपक्वता का द्योतक (सूचक ) हो जाता है पीढ़ियों से जुड़कर कहीं दूसरा अर्थ तो संलग्न नहीं हो जाएगा | एक नज़र देखने से मुझे ऐसा लगा |

कृपया अन्यथा मत लीजियेगा ग़ज़ल में आपकी मेहनत और हिंदी का यह स्वरूप  अति प्रशंसनीय है 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service