For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम पथिक आए कहाँ से (नवगीत) - कल्पना रामानी

तुम पथिक, आए कहाँ से,

कौनसी मंज़िल पहुँचना?

इस शहर के रास्तों पर,

कुछ सँभलकर पाँव धरना।

 

बात कल की है, यहाँ पर,

कत्ल जीवित वन हुआ था।

जड़ मशीनें जी उठी थीं,

और जड़ जीवन हुआ था।

 

देख थी हैरान कुदरत,

सूर्य का बेवक्त ढलना।

 

जो युगों से थे खड़े

वे पेड़ धरती पर पड़े थे। 

उस कुटिल तूफान से, तुम  

पूछना कैसे लड़े थे।

 

याद होगा हर दिशा को,

डालियों का वो सिसकना।

 

घर बसे हैं अब जहाँ,

लाखों वहीं बेघर हुए थे।

बेरहम भूकम्प से सब,

बेवतन वनचर हुए थे।

 

खिलखिलाहट आज है, कल

था यहीं आहों का झरना।

   

हो सके, उनको चढ़ाना,

कुछ सुमन संकल्प करके।

कुछ वचन देकर निभाना,

पूर्ण काया-कल्प करके।

 

याद में उनकी पथिक! तुम  

एक वन की नींव रखना। 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 804

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 21, 2014 at 8:48pm

आदरणीया कल्पना जी 

बहुत सुन्दर गीत हुआ है.. एक हरे भरे शहर का डीफोरेस्टेशन, और उसकी जगह कंकरीट की मशीनी जड़ता का उग आना बहुत संवेदन शीलता से अभिव्यक्त हुआ है... 

बात कल की है, यहाँ पर,

कत्ल जीवित वन हुआ था।

जड़ मशीनें जी उठी थीं,

और जड़ जीवन हुआ था।................किस तरह इंडसट्रीयलाइज़ेशन वनों को साज़िश के तहत निगल जाता है..उसकी सार्थक प्रस्तुति 

लेकिन आगे के बंद में...

घर बसे हैं अब जहाँ,

लाखों वहीं बेघर हुए थे।

बेरहम भूकम्प से सब,

बेवतन वनचर हुए थे।...................यहाँ स्पष्टतः भूकंप को कारण बताया है fauna(एनिमल्स) के habitat छिन जाने का 

तथ्य के तौर पर यहाँ थोड़ी सी तार्किकता होनी चाहिए.... और यदि भूकंप को एक बिम्ब की तरह लिया है तो यह बिम्बात्मकता यहाँ स्पष्ट न होकर विरोधाभास उत्पन्न कर रही है, कि वनों की तबाही का कारण प्राकृतिक आपदा रहा या औद्योगीकरण.  (शायद मैं स्पष्ट कर पायी)   

प्रति पद अंतिम पंक्तियों में यूं तो समतुकांतता का निर्वहन हो रहा है लेकिन फिर भी इनपर संतुष्ट मैं भी नहीं हो पा रही हूँ... आ० सौरभ जी के कहे से पूर्णतः सहमत हूँ.

ढलना धरना सिसकना झरना रखना...........इस तुकांतता में कर्णप्रियता कुछ तो कम ज़रूर है.

एक बात: मैंने अपने सीखने के क्रम में ये ज़रूर जानी कि शिल्प से सम्बंधित कुछ सूक्ष्म  बातें हम कई बार इंगित हो जाने के बाद भी नहीं समझ पाते या स्वीकार कर पाते... लेकिन समय के साथ धीरे धीरे जब वो हमें समझ आती हैं तो हमारी स्वीकार्यता उनके लिए अपनेआप ही बनने लगती है.

सादर शुभकामनाएं.

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 18, 2014 at 9:01pm

बात कल की है, यहाँ पर,

कत्ल जीवित वन हुआ था।

जड़ मशीनें जी उठी थीं,

और जड़ जीवन हुआ था।

 

देख थी हैरान कुदरत,

सूर्य का बेवक्त ढलना।......................बहुत सुंदर, आदरणीया बधाई स्वीकारें

.................

 

Comment by Savitri Rathore on January 18, 2014 at 8:03pm

अतिसुन्दर कल्पना !

Comment by रमेश कुमार चौहान on January 17, 2014 at 9:27pm

 इस उत्कृष्ट प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by कल्पना रामानी on January 17, 2014 at 1:00pm

आदरणीय गिरिराज जी, प्रशंसात्मक शब्दों के लिए सादर धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on January 17, 2014 at 12:58pm

आदरणीय, मुझे भी इस एक ही स्थान पर खटका था जहाँ कोई शब्द नहीं सूझ रहा था तो मैंने यही सोचा कि लय और मात्राएँ बराबर हैं तो ठीक ही होगा। लेकिन मन में उथल पुथल तो मच ही गई थी,कंप्यूटर बंद करने के बाद समाधान सूझ गया फिर आकर संशोधन किया, आपको मैसेज भी दिया, अपनी टिप्पणी हटाना ठीक नहीं समझा, क्योंकि इससे अन्य सीखने वालों को लाभ ही होगा। यह सब आपकी टिप्पणी से ही संभव हो पाया वरना एक महीने से तैयारी में लगे इस गीत को पूर्ण ही नहीं कर पा रही थी। आपका बहुत बहुत धन्यवाद । सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 17, 2014 at 12:42pm

//मुझे तो इसकी लय और मात्रिक शिल्प में कोई गलती नज़र नहीं आती। //

जय हो.. अब मैं क्या कहूँ ! आपने प्रस्तुत रचना में संशोधन भी कर लिया. और इस आसानी से पूछ भी रही हैं कि कोई गलती नज़र नहीं आ रही है तो मैं क्या कोई कुछ नहीं कह सकता.. :-)))
चलिये, रचना की तुक सुधर गयी है, अब इस पर भी बधाई.
आपकी इस रचना के कारण ही यह पोस्ट संभव हो पाया.

http://www.openbooksonline.com/group/chhand/forum/topics/5170231:To...
 
आप कमसेकम यह तो स्वीकार कर लेतीं कि आपने इस प्रस्तुति के आखिरी बन्द की आधार पंक्ति या ऐसी ही तुकों में आवश्यक सुधार कर लिया है.  वर्ना ऐसा कुछ कहना तो सीधा-सीधा किसी की टिप्पणी और सलाह को नकारना हो गया आदरणीया.

चलिये, किस्सा खत्म हुआ.
 

//नवगीत मात्रिक छंद ही होते हैं। वर्ण वृत्त में रखने से भाव भी तो बदल जाते हैं ना। //

ये क्या कह रही हैं आप, आदरणीया ? ऐसा कहना अनावश्यक विवाद ही पैदा करेगा.  हम शिल्पों पर ऐसी बातें न करें जिसका कोई तार्किक अर्थ नहीं निकलता.

//मैं तो अपनी पूरी क्षमता से ही लिखती हूँ ..//

आपकी क्षमता का ही सम्मान है आदरणीया कल्पनाजी, कि आपकी रचना को पढ़ने के बाद मैं अपनी थोड़ी-बहुत जानकारी के अनुसार देर रात गये तुकन्तता पर वो पोस्ट लगाया हूँ जिसका लिंक ऊपर दिया गया है.  यानि अभी वह पोस्ट एकदम ताजा है.. :-)))

//लेकिन आपको संतुष्टि नहीं होती तो लगता है शायद अभी मुझे लिखना नहीं आता। //

क्या ऐसा नहीं हो सकता, आदरणीया.. कि हम सभी को अभी पढ़ना नहीं आता .. हा हा हा हा... . :-))))
हम सब यहाँ अपनी-अपनी विद्वता नहीं झाड़ रहे हैं आदरणीया. हमसब समवेत सीख रहे हैं.

और हम-आप इसे पूरी गहराई से जितनी जल्दी समझ लें, उतना अच्छा !

सादर धन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 17, 2014 at 12:10pm

आदरणीया कल्पना जी , बहुत सुन्दर नवगीत की रचना की है आपने , आपको हार्दिक बधाई ।

बात कल की है, यहाँ पर,

कत्ल जीवित वन हुआ था।

जड़ मशीनें जी उठी थीं,

और जड़ जीवन हुआ था।

 

देख थी हैरान कुदरत,

सूर्य का बेवक्त ढलना। ---- बहुत खूब सूरत बन्द !! आपको बधाई ॥

Comment by कल्पना रामानी on January 17, 2014 at 9:56am

आदरणीय सौरभ जी, इस रचना पर मैंने अत्यधिक श्रम किया है। मुझे तो इसकी लय और मात्रिक शिल्प में कोई गलती नज़र नहीं आती। नवगीत मात्रिक छंद ही होते हैं। वर्ण वृत्त में रखने से भाव भी तो बदल जाते हैं ना। मैं तो अपनी पूरी क्षमता से ही लिखती हूँ लेकिन आपको संतुष्टि नहीं होती तो लगता है शायद अभी मुझे लिखना नहीं आता। आपके कथन पर और विचार करूंगी, संभव हुआ तो संशोधन भी कर दूँगी।  पसंद करने के लिए हार्दिक आभार। सादर

Comment by कल्पना रामानी on January 17, 2014 at 9:50am

आदरणीय शिज्जु जी, नीरज जी, आदरणीया कुंती  जी,  अन्नपूर्णा जी, वंदना जी, आप सबका रचना को सराहने के लिए हार्दिक आभार।   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
2 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
3 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service