For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुश्किल में हूँ कान्हा

कैसे तोहे नैनों में बसाऊँ

मेरे श्याम सांवरे
कैसे तोहे मीठे बैन सुनाऊं

कभी तेरे कुंडल मोहें मोहे  
कभी माथे की बिंदिया
कभी तेरी बंसी छेड़े मोहे 
कभी अँखियाँ छीने निंदिया

मुश्किल में हूँ कान्हा

कैसे तोहे नैनों में बसाऊँ

लाल-पीली पगड़ी पे कान्हा

मोती बन माथे पे लटक जाऊं

कभी होठों की लाली मोहे मोहे  
कभी भाल का चन्दन
कभी तेरी बतियां सोहे मोहे 
कभी राधिका वन्दन
 

मुश्किल में हूँ कान्हा

कैसे तोहे नैनों में बसाऊँ

मेरे श्याम सांवरे
कैसे तोहे मीठे बैन सुनाऊं ...........

.

पूनम माटिया 'पूनम'
(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 912

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Poonam Matia on January 17, 2014 at 11:01pm

Saurabh Pandey जी .....बृजेश नीरज जी ......जितेन्द्र 'गीत' जी ......आप सभी का हार्दिक धन्यवाद उत्साहवर्धन के लिए 

Comment by Poonam Matia on January 17, 2014 at 10:58pm

 annapurna bajpai जी नमस्कार .....ओ बी ओ से तो बहुत पहले से जुडी हुई हूँ .....लेकिन बस पढ़ती रहती थी और कभी कभी प्रतिक्रिया देने का दुस्साहस कर लेती थी :) पोस्ट पहली बार ही किया कुछ .धन्यवाद आपने सहज अपनाया मुझे 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 17, 2014 at 10:47am

बेहद सुंदर कोमल भाव, बधाई स्वीकारें आदरणीया पूनम जी

Comment by बृजेश नीरज on January 17, 2014 at 7:43am

अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 16, 2014 at 10:15pm

आपका स्वागत है आदरणीया पूनमजी.

आपकी कोशिशों केलिए हार्दिक धन्यवाद. रचनाकर्म के लिए प्रयासरत रहें .. सादर

Comment by annapurna bajpai on January 16, 2014 at 7:00pm

अरे वाह आ0पूनम जी  आप यहाँ ! बहुत बधाई आपको ओबीओ परिवार से जुडने के लिए ।

सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकारें । 

Comment by Poonam Matia on January 16, 2014 at 12:07am

 गिरिराज भंडारी जी बहुत धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 15, 2014 at 9:13pm

आदरणीया पूनम जी , बहुत सुन्दर कृष्ण भजन रचना की है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Poonam Matia on January 15, 2014 at 9:12pm

आदरणीय योगराज जी .....माफ़ी चाहती हूँ .मुझे खुद नहीं मालूम था कि रिप्लाई बॉक्स बंद है 

वो तो किसी ने फेसबुक मेसेज में भेजा ......:) खैर देर आये दुरुस्त आये .... लगभग सत्तर मित्र इस पोस्ट 

को देख -पढ़ चुके हैं .....किन्तु प्रतिक्रियां इसी वज़ह से नगण्य हैं .... 

इसी बीच मैंने अपनी ही रचना को सुधार कर कुछ नया रूप दिया देखिये कैसी बन पाई है ....

कैसी कठिनाई आई, नैनो में बसाऊँ कैसे

मीठे-मीठे बैन तोहे, सांवरे सुनाऊँ कैसे

कभी छेड़े मोहे मोरे कानन के कुंडल

बही बही जावे मोरे माथे की बिंदिया

कभी मोहे मोहे तेरी बंसी की तान कान्हा

जानै उड़ाई मोरे नैनन की निंदिया

कैसी कठिनाई आई, नैनो में बसाऊँ कैसे

मीठे-मीठे बैन तोहे, सांवरे सुनाऊँ कैसे

कभी तो लुभाए तेरे होंठों की ये लाली कान्हा

जियरा चुराए कभी माथे का ये चन्दन

कभी तो सुहाएं मोहे बातें तोरी मतवारी

और कभी मन भाए नैनों की ये चितवन

कैसी कठिनाई आई, नैनो में बसाऊँ कैसे

मीठे-मीठे बैन तोहे, सांवरे सुनाऊँ कैसे

लाल पीली पगड़ी पे तोरी वारी वारी जाऊँ

मन करे बन जाऊँ मोती की लड़ी मैं

कौन सो जतन करूँ कौन सो रतन बनूँ

जासै तोरी पगड़ी में जाऊँ यूं जड़ी मैं

कैसी कठिनाई आई, नैनो में बसाऊँ कैसे

मीठे-मीठे बैन तोहे, सांवरे सुनाऊँ कैसे............ पूनम माटिया 'पूनम'


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 15, 2014 at 8:38pm

आदरणीया पूनम माटिया जी, मैं आपकी रचना पर प्रतिक्रिया देना तो चाहता था, लेकिन अपने रिप्लाई बॉक्स को क्लोज कर रखा था. बाद में आपने मॉडरेट कर दिया. :)

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
7 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service