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ग़ज़ल - सच को अपनाने का जब ऐलान किया !

ग़ज़ल –
फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फा
२२ २२ २२ २२ २२ २

सच को अपनाने का जब ऐलान किया ,
सबने मुझ पर बाणों का संधान किया |

जागो रण में नींदें भारी पड़ती हैं ,
अभिमन्यू ने प्राणों का बलिदान किया |

आंसू की दो बूँदें टपकी पन्नो पर ,
मैंने अपने किस्से का उन्वान किया |

सोने की अपनी अपनी लंकाएं गढ़ ,
हमने ख़ुद में रावण को मेहमान किया |

देश निकाला देकर सारे पेड़ों को ,
हमने अपने शहरों को वीरान किया |

भूख ग़रीबी महंगाई दो दिन के हैं ,
कुबड़े काने राजा ने फरमान किया |

दूषित होकर भी गंगा गंगा ही है ,
बेशक हमने अपना ही नुक्सान किया |

वृद्धाश्रम में नाम लिखाकर भूल गए ,
हमने अपनों का ऐसा सम्मान किया |

बाहर बाहर उन्नतशील लबादे हैं
भीतर भीतर मूल्यों को शमशान किया |

सच्चाई थी धोती लाठी ऐनक में ,
बापू ने उस सच्चाई का ध्यान किया |

* सर्वथा मौलिक और अप्रकाशित .

©& ® 06012014- अभिनव अरुण

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2014 at 2:08pm

आदरणीय अभिनव अरुण भाई , लाजवाब ग़ज़ल कही है , हर शेअर बहुत सुन्दर , प्रभावी हैं , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by mohinichordia on January 7, 2014 at 2:05pm

अभिनव अरुण जी बहुत खूब कहा |

Comment by mohinichordia on January 7, 2014 at 2:04pm

पहली दो पंक्तियाँ इस रचना की जान लगीं |सच की ओर जाने का रास्ता ऐसा ही होता है, फिर भी चलते ही रहना  है,  एक दिन कई लोग साथ चलने लगेंगे | एक अशआर है - 

हम तो तन्हा ही चले थे जानिबे मंजिल मगर |

हमसफ़र मिलते गये और कारवाँ बनता गया | |

Comment by Abhinav Arun on January 7, 2014 at 1:37pm

श्रद्धेय संपादक महोदय , आपका आशीर्वाद नूतन वर्ष में नयी ऊर्जा दे रहा है।  हर्षित हूँ। आपका स्नेहसिक्त मार्गदर्शन प्राप्त होता रहे ईश्वर से यही प्रार्थना है !! सादर प्रणाम !!

Comment by Abhinav Arun on January 7, 2014 at 1:35pm

आदरणीया सरिता भाटिया जी दिली शुक्रिया आपका इस प्रोत्साहन के लिए !


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 7, 2014 at 12:25pm

//आंसू की दो बूँदें टपकी पन्नो पर ,
मैंने अपने किस्से का उन्वान किया |// इस शेअर की बुलन्दी तक पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं है - वाह वाह वाह !  

//सोने की अपनी अपनी लंकाएं गढ़ ,
हमने ख़ुद में रावण को मेहमान किया | // लाजवाब शेअर !!

इस रौशन कलाम के लिए हृदयतल से आपको कोटिश: बधाई आ० भाई अरुण जी.

Comment by Sarita Bhatia on January 7, 2014 at 9:23am

बहुत उम्दा 

Comment by Abhinav Arun on January 7, 2014 at 7:43am
आदरणीय श्री अमित दुबे जी ह्रदय से धन्यवाद ग़ज़ल अनुमोदित हो धन्य हुई !
Comment by Abhinav Arun on January 7, 2014 at 7:42am
आदरणीय श्री अजय शर्मा जी बहुत आभार और नूतनवर्ष अभिनन्दन !!
Comment by अमित वागर्थ on January 6, 2014 at 10:33pm

देश निकाला देकर सारे पेड़ों को ,
हमने अपने शहरों को वीरान किया           बहुत सुन्दर

हार्दिक  बधाई आदरणीय अभिनव अरुणजी

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