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सुबह का सूरज --नवगीत !

नवगीत 
********
सुबह का सूरज 
आसमान में चढ़ जाये 
 
नव प्रभात के 
शब्द-सुमन ले 
कलरव का 
उसमे चिंतन ले 
किरणो के कुछ छंद 
सलोने गढ़ जाये    …सुबह का सूरज 
 
होते इस परिपक्व 
दिवस में 
किरणे घुल जाती 
नस-नस में 
कदमों पर आरोप 
थकन के मढ़ जाये …सुबह का सूरज 
 
ढलती ये 
संध्या की  बेला
मन हो जाता 
निपट अकेला 
छोड़ मील के पत्थर 
आगे बढ़ जाये  …सुबह का सूरज 
 
सुबह का सूरज 
आसमान में चढ़ जाये 
--------------------------------------
अविनाश बागड़े   मौलिक /अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on December 30, 2013 at 8:46pm

आदरणीय अविनाश भाई , सुन्दर नव गीत रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई ॥

Comment by AVINASH S BAGDE on December 30, 2013 at 8:37pm
आदरणीय अन्नपूर्णा जी का ह्रदय से आभार ...
Comment by AVINASH S BAGDE on December 30, 2013 at 8:36pm
आद. श्याम नारायण वर्मा जी बहुत बहुत आभार 
Comment by AVINASH S BAGDE on December 30, 2013 at 8:34pm
आदरणीय कुंती जी 
इस विस्तृत विवेचना के लिए ह्रदय से आभार 
Comment by annapurna bajpai on December 30, 2013 at 6:15pm

सुंदर नवगीत , नववर्ष के  आगमन के साथ उसके स्वागत हेतु आपकी रचना वाकई अच्छी है , बधाई । 

Comment by Shyam Narain Verma on December 30, 2013 at 10:38am
सुन्दर गीत के लिए आपको बधाई .....
Comment by coontee mukerji on December 29, 2013 at 10:42pm

बहुत सुंदर नवगीत.

सुबह का सूरज 

आसमान में चढ़ जाये 

नव प्रभात के 

शब्द-सुमन ले 

कलरव का 

उसमे चिंतन ले 

किरणो के कुछ छंद 

सलोने गढ़ जाये    …सुबह का सूरज.....हार्दिक बधाई.सादर

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