For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1)

आपस  के  संवाद में,  कितने  ही  मंतव्य !
कुछ तो हैं संयत-सहज, अक्सर हैं वायव्य
अक्सर  हैं   वायव्य,   शब्द से  चोट करारी
वैचारिक  प्रतिकार,  अहं  ने  मति भी मारी
वाक्य-वाक्य में व्यंग्य, ढंग क्या हैं मानस के ?
हे ! मानव समुदाय, यही क्या सुख आपस के ?

 
 
2)
ऊँचा   उठता  है   धुआँ,   नीचे  जाती   धार
पर सचेत-मन व्यक्ति का, यथा उचित व्यवहार  
यथा  उचित   व्यवहार,  तभी  वह  संसारी  हो
’सीख - सिखाना’  कर्म   साधना  सुखकारी  हो
चर्चा,   नहीं   विवाद,   इसी  में  सार   समूचा
शिष्ट बुद्धि,  सद्भाव,   उठाते  जन  को  ऊँचा !

************************

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1266

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 13, 2013 at 11:57am

एक मानव का दुसरे मानव से परस्पर वार्तालाप यदि अहम् भाव द्वारा नियंत्रित हो तो हर बात में वैचारिक मतभेद और व्यंग बाण प्रत्यक्ष या इंगित रूप में हृदय पर वार करते हैं... जो किसी भी परिस्थिति में सुखकर नहीं ......

एक श्रेष्ठ सचेत सांसारिक व्यक्ति द्वारा संतुलित व्यवहार ही अपेक्षित होता है.. किसी भी सकारात्मक चर्चा को जो मनबुद्धि दोनों के परिवर्धन का कारण हो सकती है उसे विवाद का रूप देना उचित नहीं..व्यावहारिक शिष्टाचार व सदभावनाओं से ही मनुष्य श्रेष्ठ होता है....

यह प्रस्तुति सिर्फ पाठन नहीं अपितु मनन चिंतन आचरण में ढालने के लिए आवश्यक वैचारिक तत्व उपलब्ध करा रही है 

ऐसी वैचारिकता को शब्द देते बहुत सुन्दर सार्थक उद्देश्यपूर्ण भाव प्रवण कुण्डलिया छंद कहे हैं आदरणीय सौरभ जी 

हृदय से बधाई इस वैचारिक प्रस्तुति के लिए.

सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 13, 2013 at 8:26am

 एक सुंदर सकारात्मक सन्देश देती रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय सौरभ जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 13, 2013 at 7:54am

आदरणीय सौरभ सर आपकी हर रचना एक नये मानक स्थापित करती है जिसमें सुन्दर भावों और कहन का समावेश होता है एक रवानी होती है, इन कुण्डलिया छंद के लिये आपको हार्दिक बधाई
सादर,

Comment by vandana on December 13, 2013 at 6:21am


आपस  के  संवाद में,  कितने  ही  मंतव्य !
कुछ तो हैं संयत-सहज, अक्सर हैं वायव्य....


ऊँचा   उठता  है   धुआँ,   नीचे  जाती   धार
पर सचेत-मन व्यक्ति का, यथा उचित व्यवहार  ...

 

चर्चा,   नहीं   विवाद,   इसी  में  सार   समूचा 
शिष्ट बुद्धि,  सद्भाव,   उठाते  जन  को  ऊँचा !

वाह आदरणीय सौरभ सर इतनी सुन्दर सीख देती कुण्डलियाँ.....परिवार को एक और नेक रखने में इस भाव की वाकई जरूरत रहती है बहुत बहुत आभार सर 

Comment by वीनस केसरी on December 13, 2013 at 3:24am

जय हो जय हो

कैसी सुन्दर बात है कैसा सुन्दर छन्द
सीखें समझें हर विधा रहें चाक चौबंद
रहें चाक चौबंद करें हम बार विधागत

हो समरस व्यवहार करें चर्चा का स्वागत
निर्मल हो माहौल करें हम बातें ऐसी

जब हम हैं परिवार हमें फिर दिक्कत कैसी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा त्रयी .....वेदना
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
19 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . असली - नकली
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा त्रयी .....वेदना
"आ. भाई सुशील जी, सादर आभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . असली - नकली
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post दिल चुरा लिया
"   आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, प्रस्तुत ग़ज़ल प्रयास की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब।"
Wednesday
Sushil Sarna posted blog posts
Tuesday
Ashok Kumar Raktale posted a blog post

दिल चुरा लिया

२२१ २१२१   १२२१  २१२  उसने  सफ़र में उम्र  के  गहना  ही  पा लियाजिसने तपा के जिस्म  को  सोना बना…See More
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

समय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पतझड़ छोड़ वसन्त में,  उग जाते हैं शूलजीवन में रहता नहीं, समय सदा अनुकूल।१।*सावन सूखा  बीतता, कभी …See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आदरणीय उस्मानी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आदरणीया बबिता जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर"
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service