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ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

हमारे नाम का चर्चा हुआ होगा सितारों में।
ज़माना खोजता होगा हमें भी बेसहारों में॥
.
किसी ने हाथ छोड़ा तो बढ़ा के रुक गया कोई,
हमारी तंगहाली भी नज़ारा थी नज़ारों में।
.
छुपाते हैं जिसे दिल में उसे ही छीन लेता है,
न जाने कौन क़ातिल है हमारे राज़दारों में।
.
न मुड़ के देखती है फिर लहर जो लौट जाती है,
बड़ी गहरी उदासी है समंदर के किनारों में।
.
रिवाज़ों के,समाजों के अजब रंगीन किस्से हैं,
वही जिनसे अदावत थी जमा हैं सोगवारों में।
.
'रवी' अपनी ज़ुबानी ये कहानी क्या बयाँ होगी,
वही समझे,वही जाने लुटा हो जो बहारों में॥
.
-मौलिक एवं अप्रकाशित।
-04.12.2013

Views: 1003

Comment

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Comment by Ravi Prakash on December 5, 2013 at 11:18pm
इतना स्नेह और आशीर्वाद देने के लिए कोटिश: धन्यवाद डा॰ आशुतोष जी । कृपया मार्गदर्शन करते रहें।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 5, 2013 at 9:11pm

रवी' अपनी ज़ुबानी ये कहानी क्या बयाँ होगी,
वही समझे,वही जाने लुटा हो जो बहारों में॥
.रवि जी बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ..हर शेर एक अनुभव बयां करता है ..अंतिम शेर बिलकुल सच बयां करता है ..मेरी तरफ से ढेरों बधाई स्वीकार करें 

Comment by Ravi Prakash on December 5, 2013 at 8:24pm
परम श्रद्धेय डा॰ गोपाल जी, आपको रचना अच्छी लगी, जान कर मन को असीम आनंद प्राप्त हुआ। स्नेह बनाए रखें। पुनः धन्यवाद।
Comment by Ravi Prakash on December 5, 2013 at 8:21pm
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया आ॰ मनु जी एवं राजेश मृदु जी।
Comment by Ravi Prakash on December 5, 2013 at 8:19pm
सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय विजय मिश्र जी। आशीर्वाद बनाए रखें॥
Comment by जगदानन्द झा 'मनु' on December 5, 2013 at 8:18pm

बहुत  बढि़या ग़ज़ल ....

Comment by Ravi Prakash on December 5, 2013 at 8:17pm
आ॰ निलेश जी, सुझाव एवं मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद। स्नेह बनाए रखें।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2013 at 7:34pm

रवि प्रकाश जी

बड़े तराशे  हुए अशआर हैं i मजा आ गया i

Comment by राजेश 'मृदु' on December 5, 2013 at 5:52pm

अहा.... बहुत ही बढि़या रचना हुई है, सादर

Comment by विजय मिश्र on December 5, 2013 at 5:41pm
खूबसूरत गजल ,रविजी भावनाएँ हर बंद में उमर -घुमर कर आयीं हैं , जो मेरे मन को सबसे ज्यादा भायी वो ये है
"किसी ने हाथ छोड़ा तो बढ़ा के रुक गया कोई,
हमारी तंगहाली भी नज़ारा थी नज़ारों में।" -- कसकता है | अनेक शुभकामनाएँ ||
.

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