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ज़रा बरसात हो जाती हिमालय भी निखर जाता---(ग़ज़ल राज)

१२२२    १२२२    १२२२   १२२२ (बह्र--हजज मुसम्मन सालिम)

ज़रा बरसात हो जाती हिमालय  भी निखर जाता

 बदन फिर से दमक जाता ज़रा पैकर निथर जाता

 

परिंदा लौट के आता शज़र के सूखते आँसू

जरा सा साथ तुम देते ज़रा वो भी ठहर जाता

 

बड़ी उम्मीद थी उसको यहाँ कुछ कर दिखाने की

अगर तुम होंसला देते उफ़ुक उसका सँवर जाता

 

खड़ा चौखट पे रहता था सदा तेरी हिफ़ाजत को

कसम से आसरा देते नसीब उसका सुधर जाता

 

भला हो ऐ ख़ुदा तेरा जो तूने राह दिखलाई

भटक कर जिंदगी में आज वो जाने किधर जाता

 

निगाहें उन चरागों की ख़ुदा हम पे भी पड़ जाती

हथेली पर जला लेते सहर अपना उभर जाता

 

सिसकती कश्तियाँ जो दर्द ये उसको सुना देती

समंदर आज खुद अपने बढ़े कद से उतर जाता 

 

*बड़ा अच्छा किया जो झील में  फेंका नहीं  कंकड़

खफ़ा होता बहुत चन्दा फ़ुसूँ उसका बिखर जाता 

************************

*संशोधित

उफ़ुक=क्षितिज़

पैकर=मुखड़ा

सहर =जादू

फ़ुसूँ=जादू मन्त्र मुग्ध

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by rajesh kumari on November 25, 2013 at 8:09pm

आदरणीय गिरिराज जी तहे दिल से आभार आपका आपने सहर शब्द की बात की है आपका कहना सही है की इसका अर्थ सवेरा के रूप में अधिक होता है किन्तु ,मैंने उर्दू के शब्द कोष में भी और कई बड़े उर्दू के साहित्य कारों की रचनाओं में सहर को जादू के रूप में प्रयोग करते पढ़ा है उसमे विसर्ग कहीं नहीं देखे ----प्रसिद्ध ईरानी शायर ‘फ़िर्दौसी का एक वाक्य देखिये ---‘‘सात-आठ बरस की उम्र में मैंने पहली बार एक मुशायरा सुना। उस वक़्त तो मुझे वह मजलिस मज़हकाख़ेज़ (उपहासजनक) सी नज़र आई। वाह, वाह, सुबहान-अल्लाह, मुकर्रर इर्शाद हो वल्ला एजाज है, जादू है,सहर है या दाद देने वालों का उछलना, हाथों का हिलाना, सब का मिलकर शोर मचाना, अजीब मसख़रापन मालूम होता था। ,ऐसे ही कुछ और शायरों की रचनाओं में मुझे सहर जादू के अर्थ में मिला तभी लिखा बाकी उर्दू के जानकार ही बताएँगे 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 25, 2013 at 7:58pm

राजेश मृदु जी आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार आपका. 

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on November 25, 2013 at 7:54pm

खूबसूरत गजल के लिये बधार्इ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 25, 2013 at 5:57pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी , बहुत शानदार , जानदार गज़ल कही है !!!! सभी शेर सुन्दर हुये है !!!! आपको तहे दिल से बधाई !!!

बस एक बात -- सहर - शब्द का अर्थ - सवेरा , या जागृति होता है, और जादू या जादूगर के लिये जो उर्दू  शब्द है वो - साहिर  है , जिसका बहु वचन --सहरः लिखा जाता है !! आदरणीया ,  इस मिसरे को पुनः  देख लीजियेगा !!!!

Comment by राजेश 'मृदु' on November 25, 2013 at 5:47pm

बहुत ही बढि़या लिखा है आपने, शानदार गज़ल के लिए आपको ढेरों बधाई, सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 25, 2013 at 5:04pm

आदरणीय सुशील सरना जी आपकी सराहना से ग़ज़ल धन्य हुई तहे दिल से आभार 


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Comment by rajesh kumari on November 25, 2013 at 5:03pm

अभिनव अरुण जी ग़ज़ल पर आपकी मुहर लगना ही खुद में बड़ी बात है आश्वस्त हुई की ग़ज़ल आपको प्रभावित कर सकी ,तहे दिल से शुक्रिया. 

Comment by Sushil Sarna on November 25, 2013 at 4:47pm

bahut umda khaaskar 

सिसकती कश्तियाँ जो दर्द ये उसको सुना देती

समंदर आज खुद अपने बढ़े कद से उतर जाता ....laaaaaajwaaaaaaab

Comment by Abhinav Arun on November 25, 2013 at 3:25pm

बेहतरीन लाजवाब भाव हर शेर बोल रहा है सुन्दर गहरे भावों की जुबां ..जिंदाबाद ! बहुत मुबारकबाद इस कलाम के लिए आ. राजेश जी !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 25, 2013 at 2:42pm

आदरणीय श्याम नारायण जी तहे दिल से आभार आपका. 

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