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!! प्रयास , कृष्ण हो जाने का !! ( अतुकांत )

 

कालीदास

मौन शास्त्रार्थ में

खुले पंजे के जवाब में

मुक्का दिखाते हैं

विद्वान अर्थ लगाते हैं

उन्हें ख़ुद पता नहीं

वो शास्त्रार्थ जीत जाते हैं !!

भगवान कृष्ण !

एक अर्जुन को

एक बार गीता सुनाते हैं

विद्वान

सौ सौ टीकायें लिख डालते हैं

अर्थ भिन्नता के साथ

सभी के अपने अपने दावे

सभी के अपने तर्क !!!

तब !!

मेरा मन प्रश्न करता है

क्या कृष्ण हुये बिना

अर्जुन हुये बिना

गीता समझी जा सकती है ?

क्या रचनाकार के अन्दर समाये बिना

या वही हुये बिना

किसी की रचना समझी जा सकती है ?

अगर हाँ ,तो ज़रूर कृष्ण ने ऐसी कोई बात कही है

जिसके हज़ारों अर्थ हों !!!!

फिर मै जो अर्थ लगाऊँ वो भी सही !

अगर नहीं , तो

क्यों न हम दावे कृष्ण बनने के बाद ही करें

और तब तक हो

केवल प्रयास ,

कृष्ण हो जाने का !!!!!!

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2013 at 7:04pm

आदरणीया मीना जी , !!!!! रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2013 at 7:03pm

आदरणीया गीतिका जी,  !!!! रचना का अनुमोदन कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका आभारी हूँ !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2013 at 7:02pm

आदरणीय अग्रज गोपाल जी , आपके द्वारा  मेरी बातों को अनुमोदन प्राप्त होना  , बहुत खुशी की बात है मेरे लिये !!!! आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2013 at 6:57pm

आदरणीय सन्दीप भाई , रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ !!!!!

Comment by Meena Pathak on November 22, 2013 at 6:28pm

और तब तक हो 
केवल प्रयास,
कृष्ण हो जाने का !! नमन 

Comment by वेदिका on November 22, 2013 at 6:18pm

विद्वान

सौ सौ टीकायें लिख डालते हैं

अर्थ भिन्नता के साथ

सभी के अपने अपने दावे

सभी के अपने तर्क !!!

लेकिन मूल से सभी इधर उधर या कुछ समानता लिए हुये होते है, और केवल अपनी विद्वत्ता प्रदर्शन के लिए, न के धर्म के पालन के लिए!  उत्तम विचार किया आपने! बधाई लीजिये!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 22, 2013 at 2:01pm

मित्र गिरिराज जी

आपने बहुत सुन्दर प्रश्न उठाया है  I

सच्चाई यह  है कि हम सब अंधे है  I

टटोल-टटोल कर अनुमान और कल्पना के सहारे निष्कर्ष निकालते है I 

जय शंकर प्रसाद जी के शब्दों में  ----

पागल रे ! तू मिलता है कब

तुझको तो देते ही है सब

यह विश्व लिए है ऋण उधार

विद्वान ही यह जानते है कि वह कितना कम जानते है i

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 22, 2013 at 2:00pm

क्या बात है

ऐसा प्रयास करना

अपने बस का है क्या ?????

साधुवाद सर जी

जय हो

कृपया ध्यान दे...

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