For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रिये तुम तो प्राण समान हो

अंतस मन में विद्यमान हो,
तुम भविष्य हो वर्तमान हो,
मधुरिम प्रातः संध्या बेला,
प्रिये तुम तो प्राण समान हो....

अधर खिली मुस्कान तुम्हीं हो,
खुशियों का खलिहान तुम्हीं हो,
तुम ही ऋतु हो, तुम्हीं पर्व हो,
सरस सहज आसान तुम्हीं हो.

तुम्हीं समस्या का निदान हो,
प्रिये तुम तो प्राण समान हो....

पीड़ाहारी प्रेम बाम हो,
तुम्हीं चैन हो तुम्हीं अराम हो,
शब्दकोष तुम तुम्हीं व्याकरण,
तुम संज्ञा हो सर्वनाम हो.

तुम पूजा हो तुम्हीं ध्यान हो,
प्रिये तुम तो प्राण समान हो....

.

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 834

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 10:15pm

 बहुत बहुत ही  सुन्दर  प्रस्तुति आदरणीय भाई अरुण  शर्मा  जी,कुछ शंका  है ।मुझे ऐसा  लग  रहा  है भाभी जी  ने डरा  धमाका कर लिखवाया है आपसे। …हा हा हा हा  हा  .... बहुत बहुत बधाई। …सादर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 10, 2013 at 11:07am

आदरणीय प्रिय मित्र कुमार गौरव अजीतेन्दु जी ह्रदयतल से हार्दिक आभार मित्र स्नेह यूँ ही बना रहे.

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 10, 2013 at 11:07am

आदरणीय गुरुदेव श्री आपकी सकारात्मक टिपण्णी पाकर मन प्रफुल्लित हो उठा आपने जिन दो परिवर्तनों की ओर इशारा किया है उन्हें ठीक कर लेता हूँ. आपको गीत पसंद आया गीत सम्पूर्ण हुआ आशीष एवं स्नेह यूँ ही बना रहे.

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 10, 2013 at 11:05am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जीतेंद्र भाई जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 10, 2013 at 11:05am

हार्दिक आभार आदरणीय गोपाल नारायन सर

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 10, 2013 at 10:02am

सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रिय मित्र अरुन जी.....

//पीड़ाहारी प्रेम बाम हो, //

झंडुबाम तो सुना था, ये नया आपने बता दिया :))))))

बहुत भावपूर्ण रचना.........


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 10, 2013 at 8:11am

प्रिय अरूण, बहुत दिनों का आग्रह पूर्ण करने हेतु साधुवाद.मन की गहराइयों में डूबने पर ही ऐसी रचनाओं का जन्म होता है.मन पुलकित हुआ.मेरे विचार से प्रिये के स्थान पर प्रिय रख देने से यह गीत उस अनंत को भी समर्पित प्रतीत होगा जिसके हम अंश हैं.अराम शायद टंकण त्रुटि का परिणाम है,आराम होना चाहिए.भावभीने गीत के लिए बधाइयाँ...............

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 9, 2013 at 11:44pm

अति सुंदर रचना, मन में घर कर गई. हृदय से बधाई स्वीकारें आदरणीय अरुण अनंत जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 9, 2013 at 5:20pm

अनंत जी  प्रेम कि दुकान क्यों  ? प्रेम का सौदा या व्यापार  हमारी संस्कृति में नहीं है 

गीत भावपूर्ण हैI   मन रंजनकारी  है I

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 5:08pm

आदरणीय गिरिराज सर बहुत बहुत धन्यवाद आपका स्नेह यूँ ही बना रहे

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
22 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
23 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service