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ग़ज़ल - समुन्दर को डगर कर दूँ - पूनम शुक्ला

1222. 1222

सबा हाजिर अगर कर दूँ
कहानी इक अमर कर दूँ

अँधेरा घेरता फिर से
सितारों को खबर कर दूँ

हवा थोड़ी तुफानी है
इसे मैं बेअसर कर दूँ

कलम की रोशनाई से
फलक रंगीं अगर कर दूँ

ख़ला की हिकमती कैसी
अगर थोड़ी सहर कर दूँ

जरा सा वक्त तुम दे दो
जहन्नुम को न घर कर दूँ

चलूँगी राह जब अपनी
समुन्दर को डगर कर दूँ

हिकमती - उपाय

पूनम शुक्ला

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Meena Pathak on November 9, 2013 at 4:38pm

बहुत सुन्दर गज़ल .. बधाई आप को 


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Comment by गिरिराज भंडारी on November 9, 2013 at 11:09am

आदरणीय पूनम जी , छोटी बह्र मे बहुत सुन्दर गज़ल कही है !!!!! आपको बहुत बधाई !!!!

Comment by umesh katara on November 9, 2013 at 8:07am

वाह्ह्ह शानदार गजल हुयी है 
हवा थोडी तुफानी है 
इसे मैं बेअसर करदूँ.....वाह्ह्ह्ह
जरा सा वक्त तुम देदो
जहन्नुम को न घर कर दूँ...शानदार लाजबाब शेर है दाद कबूलें पूनम शुक्ला जी



सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 8, 2013 at 9:24pm

जरा सा वक्त तुम दे दो
जहन्नुम को न घर कर दूँ
वाह्ह्ह शानदार शेर ,दिली दाद कबूलें सुन्दर ग़ज़ल के लिए 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 8, 2013 at 9:07pm

bahut sundar. mainekhez gazal ha. Poonam ji meri shubh kamnayein

Comment by Usha Taneja on November 8, 2013 at 9:06pm

वाह! बहुत सुन्दर!

चलूँगी राह जब अपनी
समुन्दर को डगर कर दूँ

एक श'र की कोशिश मेरी तरफ से...

लिया है आसमाँ को छू 

हवाओं को खबर कर दूँ|

Comment by annapurna bajpai on November 8, 2013 at 7:34pm


जरा सा वक्त तुम दे दो
जहन्नुम को न घर कर दूँ

चलूँगी राह जब अपनी
समुन्दर को डगर कर दूँ................... सुंदर पंक्तियाँ , बहुत बधाई आपको । 

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