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कभी आत्ममन्थन करना -- मीना पाठक

दिए दिन, महीने, बरस
जीवन के अनमोल पल
तुम्हारी तल्खियों से
आहत जख्मों को छुपा
मुस्कान की सौगात दी
कोमल भावनाएं
इच्छाओं की आहूति दी
कायम रखी
तुम्हारी मिल्कियत
वजूद को मिटा कर
फिर भी
तुम छीनते रहे मुझसे
मेरे हिस्से का वक्त
तुम्हें मंजूर नही
मेरा खुद के लिए
जीना
तृप्त ना हो सकीं
तुम्हारी इच्छाएं
छीन लेना चाहते हो
मेरा आस्तित्व
मेरी अभिलाषाएं
मेरा सब कुछ
हक से लेने वाले
कभी सोचा
तुमने मुझे क्या दिया ?
कभी आत्ममन्थन करना !!   

मीना पाठक
 
मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 686

Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 24, 2013 at 4:13pm

आदरणीया मीना जी ..सुंदर भावों से सजी इस रचना पर हार्दिक बधाई ..सादर 

Comment by Meena Pathak on October 24, 2013 at 1:10pm
आदरणीय अरुण जी हार्दिक आभार स्वीकारें | सादर
Comment by Meena Pathak on October 24, 2013 at 1:06pm
प्रिय गीतिका और जितेन्द्र जी बहुत बहुत आभार | सादर
Comment by Meena Pathak on October 24, 2013 at 1:04pm
परम आदरणीय गिरिराज जी हार्दिक आभार स्वीकारें | सादर
Comment by Meena Pathak on October 24, 2013 at 1:02pm
आदरणीय अतेंद्र कुमार जी रचना सराहने के लिए हार्दिक आभार | सादर
Comment by Meena Pathak on October 24, 2013 at 1:00pm
प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी बहुत बहुत आभार | सादर
Comment by अरुन 'अनन्त' on October 24, 2013 at 12:16pm

आहत ह्रदय से निकली प्रस्तुति अथाह पीड़ा दर्शा रही है बेहद गहन भाव हैं सुन्दर रचना.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 24, 2013 at 10:19am

सुंदर भावपूर्ण, सार्थक रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीया मीना दीदी

Comment by वेदिका on October 24, 2013 at 8:35am

ओह! मन को आंदोलित करने वाली रचना रची आपने|

न जाने कितने समर्पणों की वेदना है|

अंतर तक उतरने वाली रचना पर बधाई आ0 मीना दीदी!!  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 23, 2013 at 9:42pm

आदरणीया मीना जी , बहुत गहरी पीड़ा , गहन भावों को आपने अभिव्यक्ति दी है !!!! बहुर सुन्दर !!!! आपको बधाई !!!!

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