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गजल: ये किस मोड़ पर आ गई रफ्ता-रफ्ता, मेरी जान देखो कहानी तुम्हारी/शकील जमशेदपुरी

बह्र: 122/122/122/122/122/122/122/122
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ये किस मोड़ पर आ गई रफ्ता-रफ्ता, मेरी जान देखो कहानी तुम्हारी
कि हर लफ्ज से आ रही तेरी खुशबू, रवां है गजल में जवानी तुम्हारी

चमन में मेरे एक बुलबुल है जो बात, करती है जानम तुम्हारी तरह से
लगी चोट दिल पर कहा उसने जब ये, कि मुझसी न होगी दिवानी तुम्हारी

सरे राह तुम मिल गई यूं लगा था, कि आसान है अब सफर जिंदगी का
झुका कर निगाहों को तुमने कहा था, कि बनकर रहूंगी मैं रानी तुम्हारी

मकां मेरे दिल का है उजड़ा हुआ सा, यहां खिलती थी प्यार की भी कली कुछ
तलाशी जो ली इस बयाबान की तो, मिलीं चिट्ठियां कुछ पुरानी तुम्हारी

भले नफरतों का रहे बोलबाला, मगर मेरा विश्वास भी कम नहीं है
मेरा प्यार हरगिज न इतिहास होगा, ये दुनिया सुनेगी जुबानी तुम्हारी

-शकील जमशेदपुरी
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*मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 24, 2013 at 8:37am

वाह वाह, बहुत बढ़िया ... मज़ा आ गया ... बाकी सुधीजनों ने जो मार्गदर्शन किया है, उस का आप भरपूर लाभ लेंगे ही ... यही विश्वास है ..
सादर   

Comment by वीनस केसरी on October 24, 2013 at 1:51am

आपकी रचनाधर्मिता को सलाम
आपकी प्रयोगधर्मिता हो सलाम

ग़ज़ल में भर्ती के शब्दों की बहुतायत न् होती तो ग़ज़ल और निखर कर मंच पर प्रस्तुत होती

आदरणीय राम अवध साहब ने जो बात कही है वो ध्यान देने योग्य है इसे ऐब ए शिकस्ते नारवा कहते हैं ,,,
इस तरह की सभी दोहरी बह्र में इसका पालन आवश्यक होता है

मतले में शुतुर्गुरबा का ऐब है जो की रदीफ़ के कारण कट जा रहा है मगर आप दुरुस्त कर लें तो बेहतर होगा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 23, 2013 at 9:37pm

आदरणीय शकील भाई , इस बह्र मे बहुत दिनो बाद गज़ल पढ रहा हूँ , बहुत सुन्दर !!!! लाजवाब  गज़ल कही है बधाई !!!!!

Comment by ram shiromani pathak on October 23, 2013 at 8:16pm

सुन्दर प्रस्तुति //हार्दिक बधाई आपको //सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 23, 2013 at 7:56pm

आदरणीय शकील भार्इ जी,  बहुत सुन्दर रचना। आ0 राम अवध जी की बात से मैं भी इत्तेफाक रखता हू। शुभकामनाओं सहित बधार्इ स्वीकारें। सादर,

Comment by शकील समर on October 23, 2013 at 7:05pm

​धन्यवाद आदरणीया annapurna bajpai  जी

Comment by annapurna bajpai on October 23, 2013 at 6:52pm

सुंदर गजल बधाई आपको । 

Comment by शकील समर on October 23, 2013 at 6:17pm

आदरणीय Ram Awadh VIshwakarma जी
इस सुझाव के लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूं। आपने जो मिसरा सुझाया है उसमें भाव कहीं ज्यादा स्पष्ट है। सुधार करवाने के लिए एक बार पुन: आपका आभार।

और हां, मैं उस्ताद शायर नहीं हूं, बल्कि इस मंच पर मौजूद गजल शिल्प के जानकारों से सीख रहा हूं। आप भी अपना आशीर्वाद बनाए रखिएगा। सादर।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 23, 2013 at 6:05pm

आदरणीय शकील जमशेदपुरी साहब जी
मेरे ज्ञान के अनुसार आपके गजल की बहर है फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन, फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
आपके शेर '' चमन में मेरे एक बुलबुल है जो बात, करती है जानम तुम्हारी तरह से यह बहर के हिसाब से जहाँ अर्ध विराम है वहाँ फऊलुन समाप्त हो जाता है और आगे फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन मे ंनही आता है मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार शेर इस प्रकार होना चाहिये
'' चमन में मेरे एक बुलबुल है जानम, जो करती है बातें तुम्हारी तरह से आप उस्ताद शायर हैं मैं गलत भी हो सकता हूँ जरूरी नहीं कि मैं सही कह रहा हूँ।

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