For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत (दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ)

गीत (दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ)

दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ, कोशिशें करके इनको घटा दीजिए,

एक कदम मैं चलूँ, एक कदम तुम चलो, धूल नफरत की दिल से हटा दीजिए।

 

कहना चाहते हो गर तुम तो खुल के कहो,

वरना रिश्ता ये बदनाम हो जाएगा,

लाख चाहो छुपाना ज़माने से पर,

एक दिन ये सरेआम हो जाएगा,

सुबह की चाय में घोलकर प्यार को, थोड़ी - थोड़ी सी सबको पिला दीजिए,

एक कदम मैं चलूँ, एक कदम तुम चलो, धूल नफरत की दिल से हटा दीजिए।

दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ......

 

फेरना ना निगाहें हमें देखकर,

रूठ बैठे हो हमसे क्या काफी नहीं,

गल्तियाँ हो ही जाती हैं इन्सान से,

ऐसा भी क्या हमें कोई माफी नहीं,

मन तुम्हारा अगर हमसे चोटिल हुआ, उसमें यादों का मरहम लगा दीजिए,
एक कदम मैं चलूँ, एक कदम तुम चलो, धूल नफरत की दिल से हटा दीजिए।

दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ......

 

याद है एक दिन आप हमको मिले,

गालों पर मोतियों की थी बिखरी लड़ी,

बादलों ने उकेरी जो तेरी छवि,

आँसू बरसे वहाँ से भी बनके झड़ी,

इस उफनती नदी को मेरी आँख के, गहरे सागर में लाकर समा दीजिए,

एक कदम मैं चलूँ, एक कदम तुम चलो, धूल नफरत की दिल से हटा दीजिए।

दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ......

.

सुशील जोशी

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 1056

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil.Joshi on October 7, 2013 at 9:05pm

आपके आशीर्ववचनों के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज जी...

Comment by Sushil.Joshi on October 7, 2013 at 9:05pm

गीत को पसंद कर अपनी अनमोल टिप्पणी से मेरी हौसलअफज़ाही करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीया गीतिका जी....

Comment by बृजेश नीरज on October 7, 2013 at 8:16pm

बहुत ही सुन्दर गीत है. आदरणीया प्राची जी के कहे पर ध्यान दें. आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 7, 2013 at 7:52pm

आ० सुशील जी 

बहुत सुन्दर प्रवाहमय मनुहार...

रुठे साथी को इस सुन्दर अंदाज से मनाना बहुत पसंद आया. भावनाएं भी जैसे स्वतः ही बह निकली हैं...बहुत सुन्दर 

शिल्प की दृष्टी से सिर्फ एक बात कहना चाहूंगी की गीतों में मात्रिकता के प्रति थोड़ी सी संवेदनशीलता प्रवाह को बिलकुल साध देती है.. इस कसौटी पर कुछ पंक्तियों को कसे जानी की ज़रुरत महसूस हुई..

सादर शुभकामनाएं 

Comment by Savitri Rathore on October 7, 2013 at 7:14pm

अत्यंत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी गीत !

Comment by coontee mukerji on October 7, 2013 at 3:32pm

याद है एक दिन आप हमको मिले,

गालों पर मोतियों की थी बिखरी लड़ी,

बादलों ने उकेरी जो तेरी छवि,

आँसू बरसे वहाँ से भी बनके झड़ी,

इस उफनती नदी को मेरी आँख के, गहरे सागर में लाकर समा दीजिए,

एक कदम मैं चलूँ, एक कदम तुम चलो, धूल नफरत की दिल से हटा दीजिए।

दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ.........मन को छु देने वाला भाव ....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 7, 2013 at 9:15am

आदरणीय सुशील जी,

इस मधुर प्रवाहमय गीत के लिये हृदय से बधाइयाँ.........

कहना चाहते हो गर तुम तो खुल के कहो,

वरना रिश्ता ये बदनाम हो जाएगा,

लाख चाहो छुपाना ज़माने से पर,

एक दिन ये सरेआम हो जाएगा,

सुबह की चाय में घोलकर प्यार को, थोड़ी - थोड़ी सी सबको पिला दीजिए,

अद्भुत और प्यारी-सी कल्पना मन को छू गई, वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 6, 2013 at 10:22pm

आदरणीय सुशील भाई जी वाह बहुत ही सुन्दर गीत रचा है प्रेम रस से सराबोर बेहद सुन्दर पंक्तियाँ बहुत बहुत बधाई स्वीकारें

Comment by MAHIMA SHREE on October 6, 2013 at 6:39pm

एक कदम मैं चलूँ, एक कदम तुम चलो, धूल नफरत की दिल से हटा दीजिए... वाह बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति बधाई आपको

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 6, 2013 at 3:40pm

बड़े भाई साहब बहुत बड़ा प्रभाव छोड़ गया ये गीत ! वाह क्या खूब लिखा है ! दिलसे दाद स्वीकार करें !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service