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इक हलचल सी चौखट पर

नयनों में हैं स्वप्न भरे

 

उड़ता-फिरता इक तिनका

पछुआ से संघर्ष रहा

पेड़ों की शाखाओं पर

बाजों का आतंक रहा

 

तितली के इन पंखों ने   

कई सुनहरे रंग भरे

 

दूर क्षितिज की पलकों पर

इक किरण कुम्हलाई सी

साँझ धरा पर उतरी है

आँचल को ढलकाई सी

 

गहन तिमिर की गागर में

ढेरों जुगनू आन भरे

 

इन शब्दों के चित्रों में

दर्द उभर ही आते हैं

जाने क्यूँ पीड़ा से अब

राग छलक ही जाते हैं

 

इक छोटी सी आशा है

नित रग-रग में प्राण भरे 

                 - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment by बृजेश नीरज on September 25, 2013 at 11:01am

आदरणीय प्रदीप जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Pradeep Kumar Shukla on September 25, 2013 at 10:47am

bahut sundar laybaddh rachna Brijesh ji ... badhai iske liye ... yeh 'Navgeet' kya hai?

 

Comment by बृजेश नीरज on September 25, 2013 at 10:33am

आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार!

आपकी टिपण्णी की ही प्रतीक्षा में था मैं.

मैं आपसे सहमत हूँ. तुकांतता साधने का प्रयास कर रहा था लेकिन आपके कहे के अनुसार तुक निर्धारित नहीं कर सका इस रचना में. इसका मुझे भी अफ़सोस है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 25, 2013 at 10:24am

आदरणीय बृजेश जी 

नवगीत पर आपके सतत प्रयास मुग्ध करते हैं ...बिम्बों के माध्य, से निस्सृत होते भाव सीधे हृदय तक पहुँच पाठक से हामी लेने में सक्षम होते हैं , यही आपकी लेखनी की खासियत भी है 

जिस हेतु आपको बारम्बार बहुत बहुत बधाई

अब शिल्प पर... मुझे ऐसा लगता है कि आप यदि तुकांतता पर और सुगढ़ प्रयास करें तो रचनाओं में निखार आएगा 

यथा यहाँ .. स्वप्न भरें, रंग भरे, आन भरे, प्राण भरे ............. यदि रेखांकित शब्दों में तुक मिलान किया जाता तो मधुरता बढ़ जाती. ( यह मेरी निजी राय है , आप सहमत/असहमत हो सकते हैं ) :-)))

हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by बृजेश नीरज on September 20, 2013 at 6:56pm

आदरणीया परवीन जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 20, 2013 at 6:56pm

आदरणीय गिरिराज जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 20, 2013 at 6:52pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Parveen Malik on September 20, 2013 at 2:48pm
आदरणीय बृजेश जी बेहद खूबसूरत रचना ... सादर बधाई !

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 20, 2013 at 11:22am
आदरणीय बृजेश भाई , सुन्दर , अति सुन्दर रचना के लिये बधाई !!!

इन शब्दों के चित्रों में
दर्द उभर ही आते हैं
जाने क्यूँ पीड़ा से अब
राग छलक ही जाते हैं
इक छोटी सी आशा है
नित रग-रग में प्राण भरे -------- बेमिसाल लाइनें !!! वाह वा !!
Comment by annapurna bajpai on September 19, 2013 at 11:17pm

आ0 बृजेश जी सुंदर मनोभावों को व्यक्त करती आपकी रचना ! इस अनुपम रचना हेतु आपको बहुत बधाई । 

कृपया ध्यान दे...

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