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रे मन ! दृढ़ता का बीज बो,
आज कठोर होता चल तू।
जीवन है एक कठोर संग्राम,
इसे विजित कर आगे निकल तू।
क्या रखा है इस जगत में,
यह तो केवल छाया-माया है।
क्या रखा है इस जीवन में,
इसने तो केवल भरमाया है।
तेरा अपना कुछ भी नहीं है,
केवल भ्रम की एक छाया है।
जब छोड़कर जाना है सब,
तो क्यों तू इतना इतराया है।
जब झूठे हैं ये सारे  बंधन,
क्यों  इनमें स्वयं को रमाया है।
फिर तोड़ दे तू ये सारे बंधन,
इनके भ्रम से बाहर निकल तू।
रे मन ! दृढ़ता का बीज बो,
आज कठोर होता चल तू।
कब था वो तेरा साथी,
जिस पर तूने स्नेह लुटाया।
कब था वो तेरा अपना,
जिस पर तूने स्वयं को मिटाया।
कब थे वो परिजन तेरे,
जिनके लिए तूने कष्ट उठाया।
धन-वैभव सब यहीं छूटेगा,
कौन इन्हें संग ले जा पाया।
क्षणिक हैं ये सांसारिक बंधन,
जिनके मोह में तू भरमाया।
तेरी मृत्यु संग टूटेंगे ये सब,
अतः जीवन रहते ही संभल तू।
रे मन ! दृढ़ता का बीज बो,
आज कठोर होता चल तू।
जीवन है एक कठोर संग्राम,
इसे विजित कर आगे निकल तू।
'सावित्री राठौर'
१६ सितम्बर २०१३
[मौलिक एवं अप्रकाशित]

Views: 1058

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Comment by vijayashree on September 18, 2013 at 4:48pm

सावित्री जी सुंदर भाव 

कठोरता अगर गन्ने जैसी हो तो क्या कहने ...पड़े भी तो मधुर  रस टपकाए 

बधाई स्वीकारें 

Comment by vijay nikore on September 18, 2013 at 12:56pm

आदरणीया सावित्री जी:

 

रचना में भाव अच्छे पिरोय हैं। बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 17, 2013 at 11:38pm

सुंदर भावनात्मक रचना , बहुत बहुत बधाई आदरणीया सावित्री जी

Comment by annapurna bajpai on September 17, 2013 at 10:42pm
आ0 सावित्री जी बहुत सुंदर रचना है , सुंदर भावों से परिपूर्ण आपकी रचना बहुत बधाई आपको ।
Comment by Savitri Rathore on September 17, 2013 at 9:38pm

अरुण जी मेरी रचना के मर्म को समझने हेतु आपका बहुत -बहुत आभार !

Comment by Savitri Rathore on September 17, 2013 at 9:37pm

गिरिराज जी आपका आभार !

Comment by Savitri Rathore on September 17, 2013 at 9:36pm

अखिलेश कृष्ण जी,धन्यवाद !

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 17, 2013 at 5:32pm

वाह आदरणीया सावित्री जी सच कहा आपने दृढ़ता और कठोरता तो बेहद जरुरी है जीवन में हर पल एक नई चुनौती है. सभी को पता है जो आया है वो जाएगा फिर भी सभी मोह माया, प्रेम, बंधन में बंधे रहते हैं और यह बंधन मृत्यु के साथ ही टूटता है. सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई आपको.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 17, 2013 at 2:03pm

रचना के माद्यम से सुन्दर जीवन दर्शन समझाने के लिये आपका शुक्रिया !! रचना के लिये बधाई !!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 17, 2013 at 1:31pm

सब को पीछे छोड़ , तू चल अकेला। हर पंक्ति में  जीवन दर्शन है, बधाई सावित्री जी।  

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