For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपनों को खोके बहुत रोता है आदमी,

यादों के जब बोझ को  ढोता है आदमी.

रिश्ते जो हो न सके कामयाब सफ़र में

उन्हीं को करके याद दामन भिगोता है आदमी

 

पहले काटता है पेड़,  जलाता है जंगलात ,

एक टुकड़ा छांव को फिर रोता है आदमी .

 

बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय,

पाता वही वही है जो बोता है आदमी ..

......... नीरज कुमार ‘नीर’

पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 532

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on September 16, 2013 at 8:21pm

आदरणीय बृजेश जी शुक्रिया 

Comment by Neeraj Neer on September 16, 2013 at 8:21pm

aआदरणीय अरुण है हार्दिक आभार.

Comment by बृजेश नीरज on September 16, 2013 at 6:47pm

बहुत ही अच्छा प्रयास है आपका. आपको हार्दिक बधाई!

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 15, 2013 at 3:55pm

आदरणीय नीरज भाई जी बेहद अच्छा प्रयास है रचना थोड़ी समय की मांग करती दीख रही है, खैर प्रयास पर बधाई स्वीकारें.

Comment by Abhinav Arun on September 15, 2013 at 1:09pm

सच्चे भावों से परिपूर्ण इस कविता के लिए शुभकामनायें नीरज जी !

Comment by Neeraj Neer on September 15, 2013 at 11:08am

आदरणीय जीतेंद्र गीत जी हार्दिक आभार  

Comment by Neeraj Neer on September 15, 2013 at 11:06am

आअदर्निय अन्नपूर्णा जी हार्दिक आभार 

Comment by Neeraj Neer on September 15, 2013 at 11:06am

आदरणीय इ. गणेश बागी जी , ह्रदय से आभार आपका . यह रचना ग़ज़ल नहीं है इसे छंदमुक्त नई कविता मान कर पढ़ा जाए . दरअसल मेरी दिल्ली इच्छा है कि मैं बाबह्र ग़ज़ल लिखूं , इस ग्रुप में आकर सीखने की कोशिश भी कर रहा हूँ , परन्तु सत्य यही है कि किताबें पढ़कर कोई कविता नहीं सीख सकता मेरी सारी कोशिश बेकार हो जाती है , कोई गुरु मिले तो शायद ज्ञान मिले , तब तक प्रयास फिर भी करता रहूँगा. प्रयास को सराहने के लिए धन्यवाद.

Comment by Neeraj Neer on September 15, 2013 at 10:59am

आदरणीय  गिरिराज भंडारी जी हार्दिक आभार

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2013 at 12:53am

पहले काटता है पेड़,  जलाता है जंगलात ,

एक टुकड़ा छांव को फिर रोता है आदमी ........सच कहा

बहुत ही सटीक व् संदेशप्रद रचना, बहुत बहुत बधाई आदरणीय नीरज जी.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service