For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जो ख़्वाबों में बसा लूँ तो .......(गज़ल) //डॉ० प्राची

१२२२...१२२२ 

नज़र दर पर झुका लूँ तो 

मुहब्बत आज़मा लूँ तो 

तेरी नज़रों में चाहत का 

समन्दर मैं भी पा लूँ तो 

बदल डालूँ मुकद्दर भी 

अगर खतरा उठा लूँ तो 

सियह आरेख हाथों का 

तेरे रंग में छुपा लूँ तो 

तेरी गुम सी हर इक आहट 

जो ख़्वाबों में बसा लूँ तो 

तुम्हारे संग जी लूँ मैं  

अगर कुछ पल चुरा लूँ तो 

न कर मद्धम सी भी हलचल 

मैं साँसों को सम्हालूँ तो 

तुम्हें ये राज क्या कहना 

इसे दिल में छुपा लूँ तो 

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 1599

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 14, 2013 at 10:00am

आदरणीया राजेश कुमारी जी 

गज़ल पर आपके स्नेहसिक्त उत्साहवर्धन और शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार...

आपके इंगित किये मिसरों पर अवश्य ही गौर करती हूँ ... 

मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 14, 2013 at 9:57am

आदरणीय गणेश जी 

गज़ल आपको पसंद आई, ये सुकून की बात है.. इस प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार 

'अगर कुछ पल चुरा लूँ तो'..... आदरणीय, बिल्कुल यही लिखा था मैनें मूल रूप में, फिर अंतिम रूप होते होते 'जो कुछ लम्हें चुरा लूँ तो' हो गया ...वैसे पहले वाला वास्तव में ज्यादा मधुर और सहज लग रहा है..

सादर! 

Comment by Abhinav Arun on September 14, 2013 at 9:15am

न कर मद्धम सी भी हलचल

मैं साँसों को सम्हालूँ तो


तुम्हें ये राज क्या कहना

इसे दिल में छुपा लूँ तो

.............ह्रदय की कोमल भावनाओं को स्वर मिला है बहुत ह्रदय स्पर्शी ग़ज़ल हुई है हर शेर बोल रहा है और अभिव्यक्ति की परतें खोल रहा है बहुत बहुत बधाई डॉ साहिबा !1 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 14, 2013 at 8:11am

आदरणीया डॉ प्राची दरअस्ल इस शेर के मिसरा-ए-सानी में प्रयुक्त शब्द "रँग" की बात कर रहा हूँ, ज़्यादातर मैंने यह देखा है कि इसे "रंग" लिखा जाता है, और मुझे लगता है कि  इसका वज्न होगा 21 जबकि आपने इसे 2 के वज्न में बाँधा यही मेरी शंका है,

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 14, 2013 at 12:00am

तेरी नज़रों में चाहत का 

समन्दर मैं भी पा लूँ तो 

बदल डालूँ मुकद्दर भी 

जो ये खतरा उठा लूँ तो 

आदरणीया डॉ प्राची जी बदले हुए स्वरुप के साथ सभी अशआर अच्छे लगे ..अच्छी गजल
भ्रमर ५


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 13, 2013 at 11:32pm

प्रिय प्राची जी छोटी बह्र पर बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखने का प्रयास किया सभी शेर अच्छे लगे
दो शेर के मिसरों की तरफ ध्यान दिलाना चाहूंगी
तेरी गुम सी भी हर आहट ----गुम सी के साथ भी जम नहीं रहा है
तुम्हें ये राज क्या कहना -----ये मिसरा कम स्पष्ट है
बाकी सभी शेर बहुत पसंद आये ,बहुत जल्दी आप ग़ज़ल लिखने में भी सिद्धस्त हो जायेंगी मेरी शुभकामनायें हैं


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 13, 2013 at 10:32pm

तुम्हारे संग जीना है  

अगर कुछ पल चुरा लूँ तो 

आदरणीया डॉ प्राची जी, सभी अशआर अच्छे लगें, रदीफ़ कुछ अलग लेकर ग़ज़ल कहने का प्रयास हुआ है, बधाई इस प्रस्तुति पर । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 13, 2013 at 10:19pm

स्नेहिल सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेई जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 13, 2013 at 10:19pm

आदरणीय जितेन्द्र जी 

आपकी दाद क़ुबूल की ... हृदय से धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 13, 2013 at 10:18pm

आ० मोहन बेगोवाल जी 

सराहना के लिए सादर धन्यवाद 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Jul 29
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service