For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जो ख़्वाबों में बसा लूँ तो .......(गज़ल) //डॉ० प्राची

१२२२...१२२२ 

नज़र दर पर झुका लूँ तो 

मुहब्बत आज़मा लूँ तो 

तेरी नज़रों में चाहत का 

समन्दर मैं भी पा लूँ तो 

बदल डालूँ मुकद्दर भी 

अगर खतरा उठा लूँ तो 

सियह आरेख हाथों का 

तेरे रंग में छुपा लूँ तो 

तेरी गुम सी हर इक आहट 

जो ख़्वाबों में बसा लूँ तो 

तुम्हारे संग जी लूँ मैं  

अगर कुछ पल चुरा लूँ तो 

न कर मद्धम सी भी हलचल 

मैं साँसों को सम्हालूँ तो 

तुम्हें ये राज क्या कहना 

इसे दिल में छुपा लूँ तो 

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 1599

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 15, 2013 at 1:41pm

आ० डॉ० आशुतोष जी 

गज़ल की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2013 at 10:23am

आपकी ग़ज़ल का विन्यास और आसान लहजे में अभिव्यक्ति यानि कहन एकदम से ध्यान खींचते हैं. डॉ. प्राची, यह आपकी सम्वेदनशीलता ही है जो परमसत्ता के प्रति जिज्ञासु सुलभ समर्पण को एकदम से आचरण का रूप देती है. ऐसे में आप द्वारा कोई निवेदन एक विशेष कोण के साथ प्रस्तुत होता है.  यही तथ्य प्रस्तुत ग़ज़ल का भी मूल है.

आपने ग़ज़ल के व्याकरण को समझा है, यह अवश्य है, लेकिन कहते हैं न बिना अभ्यास और प्रयास साधना पूर्ण नहीं होती. यही बात यहाँ भी दिखती है. ग़ज़ल के कुछ मूलभूत दोष होते हैं, उनके प्रति संवेदनील होना ही चाहिये. मतला को इस लिहाज से देख जाइये. 

यह अवश्य है कि अलिफ़वस्ल को आपने बखूबी निभाया है, यथा, सियाह आरेख हाथों का .. बहुत खूब ! मगर शब्दों को देख लीजियेगा.

लेकिन तेरे रँग में छुपा लूँ तो   को क्या कर दिया आपने यह मुझे कुछ समझ में आया ?  रंग कभी रँग नहीं होता जी.

प्रथम दृष्ट्या तो इतना ही.. :-)))

वैसे, यदि ग़ज़ल पर आपका यह अबतक का सबसे गंभीर प्रयास हुआ है कहूँ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.

इस बात पर दिल खोल कर बधाइयों का समय बनता है,आदरणीया.

शुभेच्छाएँ

Comment by vijayashree on September 14, 2013 at 6:12pm

हर शब्द  भावों का  मोती सा प्रतीत हो रहा है

हार्दिक बधाई डॉ प्राची  

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2013 at 5:15pm

मन को छू गयी, ऐसी उम्दा भाव गजल के लिए बधाई डॉ प्राची बहन जी 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 14, 2013 at 4:48pm

आदरणीय प्राची दी, बहुत खूबसूरत गज़ल हुई है, हर शेर दमदार ! बहुत बहुत दाद कबूलें !

एक और बात, कि क्या ये शेर बहर पर है ?

सियाह आरेख हाथों का

तेरे रँग में छुपा लूँ तो

इसमे 'सियाह' शब्द १२१ हो रहा है जबकि बहर के अनुसार १२२ होना चाहिए  ! हो सकता है कि यहाँ गज़ल का कोई नियम कार्य करता हो जिसका मुझे ज्ञान न हो ! अतः विद्वजनों से निवेदन है कि कृपया इसपर प्रकाश डाल शंका का निवारण करें !

Comment by Savitri Rathore on September 14, 2013 at 2:54pm

तुम्हारे संग जीना है 

जो कुछ लम्हें चुरा लूँ तो

तुम्हें ये राज क्या कहना

इसे दिल में छुपा लूँ तो
सुन्दर भावों को पिरोया है आपने अपने सटीक शब्दों में .........मेरे पास प्रशंसा योग्य शब्द नहीं हैं,प्राची जी !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2013 at 1:06pm

आदरणीया प्राची जी ..छोटी बहर पर ग़ज़ल लिखना महारत का काम है ..ताजगी से भरी बेहतरीन ग़ज़ल ..लेकिन छुपाते छुपाते आप सब कुछ कह कह गयीं ...मेरी तरफ से हार्दिक बधाई 

सियाह आरेख हाथों का 

तेरे रँग में छुपा लूँ तो,,,,पहली पंक्ति में मुझे गेयता में कुछ बाधा लगी ..१२२२ के जगह १२१२ की बजह से शायद ..बैसे तकनीकी पक्ष मुझे ज्यादा मालूम नहीं ..यदि मेरा आकलन गलत हो तो क्षमा करें ..सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 14, 2013 at 10:05am

आदरणीय अभिनव अरुण जी 

गज़ल के भावनाएं और शेर आपको पसंद आये.. यह गज़ल लेखन प्रयास के लिए उत्साहवर्धक है 

सादर धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 14, 2013 at 10:03am

आदरणीय शिज्जू जी 

रंग शब्द के वज़न व स्वरुप पर मैं अवश्य ही पुनः आश्वस्त हो लेती हूँ..धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 14, 2013 at 10:01am

गज़ल प्रयास पर प्रोत्साहित करते अनुमोदन के लिए धन्यवाद आ० सुरेन्द्र भ्रमर जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
9 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service