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ग़ज़ल : याद है तुझको

2122 2122 2122 2122

शेर मेरे  ये  सभी यूं तो ज़माने के लिए हैं।
बेवफा से भी मुहब्बत ही जताने के लिए हैं।।

याद है तुझको कभी तू भी रहा है साथ मेरे।
याद भी तेरी जहां में भूल जाने के लिए हैं।।

चाहता है दर्द उसके सब मिटे दुनिया से कमसिन।
दर्द भी कुछ सीने पर ही तो लगाने के लिए हैं।।

दिल उन्होंने यूं संभाला जैसे कोई आइना हो।
आइना तो यार सब ही टूट जाने के लिए हैं।।

जख्म मेरे जो भी दुनिया से मिले है प्यार में वो।
जख्म ये सब यार उनसे ही छुपाने के लिए हैं।।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by rajesh kumari on August 31, 2013 at 11:33am

केतन जी ग़ज़ल पर बढ़िया प्रयास किया है ---हाँ एक मुख्य बात पर गौर फरमाएं रदीफ़ के वचन पर ध्यान दीजिये हैं और है में फर्क महसूस कीजिये .......मतले की शुरुआत आपने शेर (बहुवचन )से की है तो रदीफ़ में हैं आना चाहिए था इसी तरह नीचे भी देखिये ये महीन सी गलती ही स्तर  में फ़र्क ला देती है बहरहाल दाद कबूल कीजिये और इसे दुरुस्त करने की कोशिश कीजिये 

Comment by annapurna bajpai on August 31, 2013 at 10:58am

आ0 केतन जी बहत ही बढ़िया गजल हुई है आपको बहुत बधाई ।

Comment by विवेक मिश्र on August 31, 2013 at 10:51am
/शेर मेरे  ये  सभी यूं तो ज़माने के लिए है।/
केतन जी! यह मिसरा पढ़कर जां निसार अख्तर साहब की ग़ज़ल का मतला याद हो आया -
"अश'आर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शे'र फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं-"

मेरे विचार से आपकी ग़ज़ल अभी और पकनी थी। सादर।

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Comment by गिरिराज भंडारी on August 31, 2013 at 10:47am

केतन भाई , सुन्दर गज़ल ! सभी शेर अच्छे लगे !! बशाई !!

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