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राम रम में घोलकर वो /लिख रहे चौपाईयां

राम रम में घोलकर वो

लिख रहे चौपाईयां

कोंपले, कत्‍थई, गुलाबी

औ हरी पुरवाईयाँ

पा भभूति हो चली हैं

पेट वाली दाईयाँ

खोल मुँह बैठा कमंडल

सुरसरि की आस में

ध्‍यान भी, करता यजन भी

डामरी उल्‍लास में

पर सरफिरा हाकिम समझता

खिज्र की रानाईयाँ

चूडि़याँ टुन से टुनककर

छन से पड़ी जिस होम में

बड़ा असर रखता गोसाईं

नीरो के उस रोम में

नरमेध के इस अश्‍व को

यह रेशमी विश्‍वास है

नर हैं सभी पंगु मगर

मादा सहज, गौ ग्रास है

फर्क है पड़ता किसे अब

कितनी कटी कलाईयाँ

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by राजेश 'मृदु' on September 2, 2013 at 6:52pm

आदरणीय वीनस जी, आपको बिम्‍ब संयोजन भाया यह एक आश्‍वस्ति दे गई, डर था कि इसे स्‍वीकृति ना मिले तो पूरी रचना निष्‍प्राण हो जाएगी । बहुत आभार आपका, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on September 2, 2013 at 6:51pm

आदरणीय सौरभ जी, आपकी प्रतिक्रिया से आश्‍वस्ति मिली । अभिनव बिम्‍बों की स्‍वीकृति को लेकर संशय में था पर आपकी स्‍वीकृति से अब राहत महसूस कर रहा हूं, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on September 2, 2013 at 6:49pm

आदरणीय अन्‍नपूर्णा जी, राम भाईजी,महिमा जी, विजयश्री जी आप सबका हार्दिक आभार, सादर

Comment by वीनस केसरी on September 2, 2013 at 4:21am

वाह वा मजा आ गया ... क्या खूबसूरत बिम्ब संयोजन है .... भव्यता नव्यता के साथ रम गई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 10:50pm

बात तो सही ही कहा है .. .

इस गीत और अभिनव बिम्ब के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ, आदरणीय राजेश भाई

Comment by vijayashree on August 31, 2013 at 10:43pm

नरमेध के इस अश्‍व को

यह रेशमी विश्‍वास है

नर हैं सभी पंगु मगर

मादा सहज, गौ ग्रास है

फर्क है पड़ता किसे अब

कितनी कटी कलाईयाँ

गीत का हर शब्द बहुत ही सुंदरता से पिरोया  है आपने 

बधाई स्वीकारें  

Comment by MAHIMA SHREE on August 30, 2013 at 10:37pm

नरमेध के इस अश्‍व को

यह रेशमी विश्‍वास है

नर हैं सभी पंगु मगर

मादा सहज, गौ ग्रास है

फर्क है पड़ता किसे अब

कितनी कटी कलाईयाँ

 

वाह बहुत सुंदर आदरणीय ..आपके गीत , नवगीत .मंत्रमुग्ध कर देते हैं .. कहाँ से चुन चुन कर शब्दों को पिरोतें है और कितने कम शब्दों में क्या न क्या कह जाते हैं  ... ह्रदय तल से बधाई आपको

Comment by ram shiromani pathak on August 30, 2013 at 10:09pm

आदरणीय राजेश जी,आपकी रचना कुछ अलग ही होती है बहुत  सुन्दर///हार्दिक  बधाई  आपको //सादर  

Comment by annapurna bajpai on August 30, 2013 at 9:24pm

फर्क है पड़ता किसे अब

कितनी कटी कलाईयाँ

 

आदरणीय राजेश झा जी सुंदर पंक्तियाँ आपको बधाई ।

Comment by राजेश 'मृदु' on August 30, 2013 at 3:15pm

आदरणीय रविकर जी, मेरी रचना पर सुंदर प्रतिक्रिया देकर आपने मेरा मनोबल बढ़ाया, सादर आभारी हूं

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