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मत्त सवैया - दो छंद

बादल भी है नुचा हुआ सा, वसुधा भी है टुकड़े टुकड़े 

शर्म हया भी बिकी हुई है, भारत के है चिथड़े चिथड़े 
भीष्म पितामह शर शय्या पर, सुत मा या में द्रोण पड़े है 
शीश गिराते कौरव देखो , शस्त्र यहाँ पर मौन पड़े हैं 
_______________________________________
सीमा तो अब नहीं देश में , शत्रु घुसा है किसी जेब में 
रुपया तो बीमार वेश में , बाढ़ घुसी है ग्राम केश में 
रोटी फेंक फेंक हम कहते, काम करो मत तुम इस लत में 
रोजगार तो दे न सकें है ,  भारत पीछे विश्व रेस में 
मौलिक व अप्रकाशित 
आशीष श्रीवास्तव (सागर सुमन) 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 31, 2013 at 12:57pm

भाई आशीषजी, अपनी व्यस्तता के चलते मैं आपकी प्रस्तुति पर अभी आ पा रहा हूँ, इसका खेद है. विश्वास है, आप मेरी विवशता समझेंगे.

आपकी संवेदनशील रचना के लिए आपका धन्यवाद लेकिन आपकी रचना जिस छंद में बतायी गयी है उसमें तो है ही नहीं. आपकी रचना मत्त सवैया है ही नहीं.

सामान्य पाठकों के लिए स्पष्ट कर दूँ कि मत्त सवैया सवैया छंदों या उसके अन्य प्रारूपों की तरह वर्णिक छंद नहीं है, बल्कि यह मात्रिक छंद है और ३२ मात्राओं के पद का होता है जहाँ १६-१६ पर यति होती है. यह चार पद समूह का छंद है जिसमें दो-दो पदों की तुकान्तता बनती है. मगर इतना ही नहीं है, बल्कि इसके अलावे एक अत्यंत गूढ़ किन्तु निर्णायक बात होती है जो मैं भाई आशीष जी के उत्तर के बाद स्पष्ट करूँगा.

अब, आशीष भाईजी, आपने मत्त सवैया को किस मात्रिकता के आधार पर या किस विधान के अनुसार समझा है या समझने की कोशिश की है आप जरा बतायेंगे, भाई ?  ताकि मैं आश्वस्त हो सकूँ.

इसी कारण इस मंच पर सभी रचनाकारों से छंद-रचनाओं को पोस्ट करने पर उसके संक्षिप्त विधान को भी साझा करने का आग्रह होता है. या, ग़ज़लकारों से ग़ज़ल के विन्यास को भी साझा करने का आग्रह होता है. ताकि न केवल सीखते हुए पाठक या रचनाकार बल्कि पोस्ट करता हुआ रचनाकार और ग़ज़लकार भी स्वयं आश्वस्त रहे कि वह जो कुछ पोस्ट कर रहा है उसमें कोई दोष नहीं है.

सादर

Comment by Ashish Srivastava on August 30, 2013 at 9:39pm

गिरिराज भंडारी 

स्नेह आप सबका मिले , मिले मुझे आशीष 

नित रच दूँ एक काव्य को, यही कामना ईश 

Comment by Ashish Srivastava on August 30, 2013 at 9:37pm

श्याम जुनेजा जी  

पहले कुछ मैं सीख लूं , फिर पकडू जड पात

क्या था कैसे हो गया , कलम कहे फिर बात

------------------------------------- 

Comment by ram shiromani pathak on August 30, 2013 at 9:35pm

आदरणीय आशीष भाई,बहुत  सुन्दर  लगी  आपकी  रचना  मुझे  हार्दिक  बधाई  आपको //सादर  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 30, 2013 at 5:11pm

आदरणीय आशीष भाई , चन्द लाइनो मे वर्तमान का अच्छा चित्रण किया आपने , बधाई !!

Comment by Ashish Srivastava on August 30, 2013 at 3:43pm

आदरनीय रविकर जी 

बहूत बहूत धन्यवाद 

Comment by Ashish Srivastava on August 30, 2013 at 3:42pm

ब्रजेश जी : धन्यवाद एवं आभार

 

Comment by Ashish Srivastava on August 30, 2013 at 3:42pm

अरुण शर्मा जी , आभार आपका और मनोबल बांधे रखने के लिए 

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 30, 2013 at 11:34am

बहुत ही सुन्दर रचना भाई वाह बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on August 29, 2013 at 7:48pm

बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है आपने! बहुत खूब! आपको हार्दिक बधाई!

कृपया ध्यान दे...

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