For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तिरंगे को लहराता देख

लगता है

हम आज़ाद हैं

 

आज़ादी सापेक्ष होती है

 

आज़ाद हैं अंग्रेजों से

 

जिंदगी तो अब भी वैसी ही है

वही साँसें

वही चीथड़े

वहीं चाँद

टूटता तारा

वही कुआँ खोदना

फटी जेबें

वही बिवाइयाँ।

 

कहाँ बदला कुछ

राजाओं के रंग बदल गये

भाषा वही है

 

सत्ता का चेहरा बदलता है

चरित्र नहीं

आजादी का मतलब

निरंकुशता की समाप्ति तो नहीं

हिटलर मुखौटे पहन लेता है बस

 

फिर भी

इस गण के तंत्र में

जहाँ जन के मन की बात

कोई नहीं सुनता

‘जन-गण-मन’ गाना अच्छा लगता है।

-        बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 555

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on August 17, 2013 at 12:46pm
बहुत सुंदर ,आज के स्वतंत्रता की अच्छी परिभाषा - रोज कूँआ खोदो और रोज पानी निकालो - शेष सब उनका .आभार बृजेशजी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 17, 2013 at 9:44am

सही कहा आदरणीय बृजेश जी आपने आज मुल्क के नुमाइंदे ही लोक तंत्र के नाम पर राज कर रहे हैं, पहले हम अँग्रेज़ों के गुलाम हुए अब अपने  देश में अपने ही नुमाइन्दो के गुलाम बन के रह गये हैं, अपनी इस सशक्त रचना के लिए दाद क़ुबूल करें. 

Comment by बृजेश नीरज on August 16, 2013 at 11:29pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी अनुमोदन हेतु आपका हार्दिक आभार!

Comment by annapurna bajpai on August 16, 2013 at 11:17pm
फिर भी
इस गण के तंत्र में
जहाँ जन के मन की बात
कोई नहीं सुनता
‘जन-गण-मन’ गाना अच्छा लगता है।

आदरणीय बृजेश जी कितनी सटीक बात लिखी है आपने । बधाई आपको ।
Comment by बृजेश नीरज on August 16, 2013 at 2:26pm

आदरणीया विनीता जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on August 16, 2013 at 2:25pm

आदरणीय नीरज जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Vinita Shukla on August 16, 2013 at 11:22am

सच है; यह आजादी तो सापेक्ष ही कही जाएगी. अंग्रेजों की गुलामी से तो मुक्ति मिल गयी लेकिन असली आज़ादी तब तक नहीं मिलेगी, जब तक मानसिक पराधीनता से उबर नहीं पायेंगे. हार्दिक बधाई एवं साधुवाद.

Comment by Neeraj Nishchal on August 16, 2013 at 11:14am

बृजेश जी बहुत ही गहरे सवाल खड़े कर रखे हैं आपने अपनी कविता में ,
और जिस आज़ादी की मांग आपकी कविता कर रही है वो तो तब तक
मिलने से रही जब तक इंसान खुद से आज़ाद नही हो जाता अपनी
मानसिकताओं से आज़ाद नही हो जाता हर एक इंसान कम से कम अपना गुलाम
तो है ही अपने मन के आगे तो बड़े बड़े शहंशाह भी लाचार हो जाते हैं ,
हमारी एक समस्या तो यही है हम जड़ को छोड़ कर डालों पत्तियों और
फलों में उलझ जाते हैं हर एक चीज हम से शुरू होती है और हर शुरुवात
हमे खुद से ही करनी पड़ेगी ...........
और एक बात ओशो आचार्य रजनीश जी ने कही है जो बड़े काम की है
यहाँ भृष्टाचार के खिलाफ आवाज़ वही उठाता है जिसे भृष्टाचार करने
का मौका नहीं मिला है .....एक सीधा सादा इंसान भी सत्ता पाकर
हिटलर हो जाए तो भी आश्चर्य की बात नही ।
आज़ादी चाहिए अपने मन की क्षुद्रता से मन के अभिमान से ,
अपनी क्षुद्र सोच से आदतों से , इस तरह जब एक एक इंसान
अपनी क्षुद्रता से आज़ाद होगा तो विराट में अग्रसर होगा
इंसान उतना ही विराट है जितना स्वतंत्र और उतना ही क्षुद्र है
जितना परतंत्र ।और विराट आनंददायी और जो आनंदित है
वो सबको आनंदित करता है और जो स्वतंत्र है वो सबको स्वतंत्र
करता है ........
आपकी कविता सोचने पर मजबूर करती है और साधारण
ढंग में बहुत असाधारण तथ्यों को उजागर करती है ।
इसके लिए बहुत बहुत आभार ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service