For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रूप तुम्हारे -(रवि प्रकाश)

मंदिर-मंदिर सजने वाली,
अक्षत,चंदन-सज्जित थाली।
या तुम कोई दीपशिखा हो,
जिस पर जीवन-जोत लिखा हो।
पूजन कोई नमन पुकारे,
जाने कितने रूप तुम्हारे॥

रात का भीगा अश्रु-कण हो,
नव विहान की प्रथम किरण हो।
तपी दोपहर अलसाई सी,
सन्ध्या थोड़ी सकुचाई सी।
चन्द्रलेख हो पंख पसारे,
जाने कितने रूप तुम्हारे॥

फागुन की मादक बयार भी,
पावस की पहली फुहार भी।
कार्तिक की हल्की सी ठिठुरन,
पौष-माघ की ठण्डी सिहरन।
तुझमें खिलते मौसम सारे,
जाने कितने रूप तुम्हारे॥

यौवन की पहली अँगड़ाई,
याद भरी पहली तन्हाई।
सुबह-सुबह की मीठी झपकी,
गालों पर प्यारी सी थपकी।
बचपन के वो सपन दुलारे,
जाने कितने रूप तुम्हारे॥

पूनम या फिर अमानिशा हो,
दिग्दर्शक या स्वयं दिशा हो।
बाधाओं में पाथेय तुम्ही,
निस्सीम कभी परिमेय तुम्ही।
कभी छलावा,कभी सहारे,
जाने कितने रूप तुम्हारे॥

सुर,लय में कितना बहलाऊँ,
गीतों में कितना गा पाऊँ।
मन ही मन कितना साध सकूँ,
छंदों में कितना बाँध सकूँ।
सँवरे को अब कौन सँवारे,
जाने कितने रूप तुम्हारे॥

मौलिक व अप्रकाशित।

Views: 934

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on August 13, 2013 at 7:27pm
सराहना के लिए धन्यवाद।।
Comment by विजय मिश्र on August 13, 2013 at 4:11pm
बहुत ही सुंदर शान्त और मंद बहती सरिता की तरह प्रवहित हो रही है . साधुवाद रविजी.
Comment by बसंत नेमा on August 13, 2013 at 11:22am

बहुत सुन्दर  अति सुन्दर ... आ0 रवि जी 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 12, 2013 at 9:39pm

आ0 रवि भाई जी,   खूबसूरत प्रस्तुति।  तहेदिल से ढेरों बधाईयां स्वीकारें।   सादर,

Comment by राजेश 'मृदु' on August 12, 2013 at 4:22pm

इतनी प्रवाह पूर्ण एवं सुंदर रचना को विभिन्‍न अनुच्‍छेदों में बांटते तो पढ़ने का और आनंद आता, बहुत बधाई, सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"पगों  के  कंटकों  से  याद  आया सफर कब मंजिलों से याद आया।१। देखा जाये तो…"
17 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई शिज्जू शकूर जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। गिरह भी खूब हुई है। हार्दिक बधाई।"
53 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उन्हें जो आँधियों से याद आया मुझे वो शोरिशों से याद आया याद तो उन्हें भी आया और शायर को भी लेकिन…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया इस शेर की दूसरी पंक्ति में…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"कहाँ कुछ मंज़िलों से याद आया सफ़र बस रास्तों से याद आया. मतले की कठिनाई का अच्छा निर्वाह हुआ।…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई चेतन जी , सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "टपकती छत हमें तो याद आयी"…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उदाहरण ग़ज़ल के मतले को देखें मुझे इन छतरियों से याद आयातुम्हें कुछ बारिशों से याद आया। स्पष्ट दिख…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"सहमत"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। गुणीजनो के सुझावों से यह और निखर गयी है। हार्दिक…"
3 hours ago
Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"मुशायरे की अच्छी शुरुआत करने के लिए बहुत बधाई आदरणीय जयहिंद रामपुरी जी। बदलना ज़िन्दगी की है…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी, पोस्ट पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service