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तुम स्त्री हो ...

सावधान रहो

सतर्क रहो

किस किस से

कब कब

कहाँ कहाँ

हमेशा रहो

हरदम रहो

जागते हुए भी

सोते हुए भी

क्या कहा ?

ख्वाब देखती हो

किसने कहा था

बंद करो

कल्पना की कूची से

आसमान में रंग भरना

उड़ना चाहती हो ?

क़तर डालो पंखो को

अभी के अभी

ओफ्फ तुम मुस्कुराती हो

अरे तुम तो खिलखिलाती भी हो

बंद करो आँखों में

काजल भरना और

हिरणी सी कुलाचे भर

भवरों संग गुंजन करना

यही तो दोष तुम्हारा  है

शोक गीत गाओ

भूल गयी

तुम स्त्री हो !

किसी भी उम्र की हो

क्या फर्क पड़ता है

आदम की भूख

उम्र नहीं देखती

ना ही  देखती है

देश धर्म औ जात

बस सूंघती है

मादा गंध

 

 मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on August 4, 2013 at 11:00pm

आदरणीय लक्ष्मण सर .. आपको  रचना पसंद आई, लिखना सार्थक रहा, स्नेह  बनाये रखे सादर आभार /

Comment by MAHIMA SHREE on August 4, 2013 at 10:57pm

आदरणीय ब्रिजेश जी आप जैसे सम्वेदनशील रचनाकार से वाह मिलना लेखन को सार्थकता देता है .. आपका ह्रदय से आभार/  

Comment by MAHIMA SHREE on August 4, 2013 at 10:46pm

आदरणीय गीतिका जी ..आपके प्रोत्साहन से सम्बल मिला स्नेह बनाये रखे .हार्दिक आभार

Comment by MAHIMA SHREE on August 4, 2013 at 10:43pm

आदरणीय शिज्जू जी रचना को समय देने और मर्म को समझने के लिए हार्दिक आभार .सहयोग बनाये रखे /

Comment by shubhra sharma on August 4, 2013 at 9:50pm

आदरणीय महिमा  जी , आपने आज के समाज में  स्त्रियों के प्रति हो रहे भेदभाव, अत्याचार ,छेड़छाड़  पर इतनी सटीक व् तीखी लेखनी चलाई है , बहुत बहुत बधाई 

Comment by Vinita Shukla on August 4, 2013 at 7:55pm

स्त्री- जीवन के कटु सत्य से रूबरू कराती, अति मार्मिक रचना. बधाई.

Comment by D P Mathur on August 4, 2013 at 7:50pm

आदरणीया आपकी रचना में एक नारी के मन की व्यथा का चित्रण प्रशनात्मक और उपदेशात्मक दोनो ही रूपों में किया गया है साथ ही आज के माहौल पर सटीक कटाक्ष भी है , वेदना भरी इस रचना के लिए आपको बधाई! 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 4, 2013 at 7:29pm

आदम की भूख उम्र नहीं देखती

ना ही  देखती है देश धर्म औ जात

बस सूंघती है मादा गंध------------सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई आदरणीया महिमा श्री जी 

Comment by बृजेश नीरज on August 4, 2013 at 6:43pm

वाह! बहुत ही सुन्दर! बहुत ही सशक्त रचना! आपको बधाई!

Comment by वेदिका on August 4, 2013 at 6:02pm

"तुम स्त्री हो !

किसी भी उम्र की हो

क्या फर्क पड़ता है

आदम की भूख

उम्र नहीं देखती "   कोट की गयी पंक्तियाँ वेदनीय है

 

कथ्य समाहित सार्थक संदेश पर 

बधाई प्रिय महिमा जी!

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