For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नज़्म - सिगरेट सी ज़िन्दगी

उँगलियों के बीच फँसी
सिगरेट की तरह
कब से सुलग रही है ज़िन्दगी
सैकड़ों ख्वाब हैं,
कश-दर-कश, धुआँ बनकर
भीतर पहुँच रहे हैं..
ज्यादातर का तो
दम ही घुटने लगता हैं
और भाग जाते हैं लौटती साँसों के साथ ।
पर कुछेक हैं,
जो छूट गए हैं भीतर ही कहीं
पड़े हुए हैं चिपक कर, टिककर..
इन दिनों एक-एक कर मैं
उन्हीं ख़्वाबों को
मुकम्मल करने में लगा हूँ.

मिलूँगा फिर कभी
कि अभी ज़रा जल्दी में हूँ
मेरी सिगरेट ख़त्म होने को है..


(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1185

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विवेक मिश्र on August 12, 2013 at 3:40am
आदरणीय सौरभ जी - इस तुच्छ सी रचना ने आपके ह्रदय के तारों को झंकृत किया, यह सुनकर ही मन आह्लादित है। मैं तो जिस दिन, आपकी टिप्पणियों के समतुल्य भी कुछ लिख सका, उस दिन से स्वयं को 'कवि' समझूँगा। स्नेह बनाए रखें।
इलाहाबाद आईं आ रउरा से भेंट कईला बिनु चल जाईं, अईसनो हो सकेला का गुरूजी.. :-)

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2013 at 3:17pm

इस रचना ने मुझे दूर तक छुआ है. कारण कि, आपकी ही उम्र में मैंने भी लिखा था --

चाहे जो हो / कुछ करे / मेरा आसमान सिगरेट नहीं पीता है... 

और जाने क्या-क्या.. :-))

आज तो वह कविता जाने कहाँ होगी, मेरे पास नहीं है. 

आज फिर सिगरेट एक कवि का उसी तरह से मिलता-जुलता बिम्ब बना है. बधाई

भाई, इलाहाबाद कब आवत बाड़ऽ.. ? सर्हियाइ के बधाई देतीं.  हा हा हा .. . 

Comment by विवेक मिश्र on August 8, 2013 at 7:52pm
बहुत धन्यवाद प्राची जी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 8, 2013 at 11:30am

ज़िंदगी को परिभाषित करती एक अलग सी अभिव्यक्ति..

हार्दिक बधाई 

Comment by विवेक मिश्र on August 8, 2013 at 2:21am
विजय निकोरे जी - मेरा यह प्रयास आपको रूचा, तहेदिल से आभारी हूँ।
* एक निवेदन - वस्तुतः मैं कोई कवि वगैरह नहीं। आप जैसे गुणीजनों का सानिध्य बना रहे तो सीखने की प्रकिया अनवरत चलती रहे। कृपया मेरे लिए 'आदरणीय' सम्बोधन प्रयोग न करें। :-)
Comment by vijay nikore on August 7, 2013 at 10:30am

आदरणीय विवेक जी:

 

//जो छूट गए हैं भीतर ही कहीं
पड़े हुए हैं चिपक कर, टिककर..
इन दिनों एक-एक कर मैं
उन्हीं ख़्वाबों को
मुकम्मल करने में लगा हूँ.//

 

वाह...वाह...वाह!  बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by विवेक मिश्र on August 6, 2013 at 5:28pm
सुलभ जी, आशीष जी, शुभ्रा जी - प्रयास को मान देने के लिए हृदय से आभार।
Comment by shubhra sharma on August 6, 2013 at 11:36am

आदरणीय मिश्र जी , जिंदगी और सिगरेट का बहुत खूब तारतम्य बैठाया आपने ,

उँगलियों के बीच फँसी
सिगरेट की तरह
कब से सुलग रही है ज़िन्दगी
सैकड़ों ख्वाब हैं,.............बधाई स्वीकार करे 
Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 5, 2013 at 10:07pm

वाह बेहतरीन नज्म विवेक जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 5, 2013 at 10:36am

बहुत सुन्दर है विवेक मिश्र जी !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
20 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service