For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कभी कभी

खामोश हो जाते हैं शब्द।

 

जीवन में

कब अपना चाहा होता है

सब।

 

बहुत कुछ अनचाहा

चलता है संग।

इस दीवार से

झरती पपड़ियाँ;

दरारों में उगते

सदाबहार और पीपल;

गमले में सूखता

आम्रपाली।

 

दिये की रोशनी सहेजने में

जल जाती हैं उंगलियाँ।

 

गाँठ खोलने की कोशिश में

ढूंढे नहीं मिलता

अमरबेल का सिरा।

 

तुम

किसी स्वप्न सी खड़ी

बस मुस्कुराती हो।

 

रेत के घरौंदे

बार बार ढह जाते हैं।

 

मैं बस निहारता रह जाता हूँ

मुँह बिराते अक्षरों को।

             - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 843

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on July 24, 2013 at 5:33pm

आदरणीय राम भाई यह सब आप लोगों की संगत का असर भर है। आपका हार्दिक आभार!

Comment by ram shiromani pathak on July 24, 2013 at 4:11pm

आदरणीय भाई ब्रिजेश जी आपकी पंक्ति //कभी कभी
खामोश हो जाते हैं शब्द। मै तो खामोश हो गया पढ़कर,और सोचने पर मज़बूर भाई कहाँ से ऐसे भाव और शब्द पा जाते है ///अनुपम //हार्दिक बधाई

Comment by बृजेश नीरज on July 23, 2013 at 8:22pm

आदरणीया अन्नपूर्णा बहन आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on July 23, 2013 at 8:20pm

आदरणीय लक्ष्मण जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on July 23, 2013 at 8:18pm

आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार! आपके शब्दों ने मुझे बल दिया।

Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 7:34pm

adarniy brejesh bhai ji , itni sudarta se piroye gaye har shabd ko kya kahun , bas nishabd hun .

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 23, 2013 at 7:16pm

बहुत खूब !सुन्दर शब्द भाव रचना के लिए हार्दिक बधाई भाई श्री बृजेश नीरज जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 23, 2013 at 5:42pm

आदरणीय बृजेश जी 

इतनी सुन्दर रचना..जैसे खामोश खड़े पाठक अपनी ही ज़िंदगी को सामने जी रहा हो..आपके शब्दों में 

हर भाव-शब्द नें रोक लिया , हर भाव बिम्ब नें मुग्ध किया

बहुत खूबसूरत.

हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on July 23, 2013 at 5:18pm

आदरणीय सौरभ जी यह जो कुछ भी है, जो कुछ भी प्रयास कर पाता हूं, सब आपकी देन है। यह मेरी सच्चाई है। कोई भी रचना जब पोस्ट करता हूं तो यह जरूर सोचता हूं कि इस पर आप क्या सोचेंगे। आपकी जो भी टिप्पणी मुझे प्राप्त होती है वह मेरे लिए अमृत की बूंद की तरह होती है।
आपने मेरी कलम को राह दिखायी, मेरे शब्दों को दिशा दी, इसके लिए आपका हार्दिक आभार! आगे अपना आशीष मुझ पर यूं ही बनाए रखिएगा, यही आपसे प्रार्थना है।
आपको नमन!
सादर!

Comment by बृजेश नीरज on July 23, 2013 at 5:10pm

आदरणीय शरदिंदु जी क्षमा। आगे से ध्यान रखूंगा।
सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service