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ग़ज़ल : वही खिलते हुए फूलों सा तेरा मुस्कुराना हो

बहर: हज़ज मुसम्मन सालिम

वही दिलकश नज़ारा हो वही मौसम सुहाना हो,

वही खिलते हुए फूलों सा तेरा मुस्कुराना हो,

जुबां से कह नहीं पाया नज़र से तुम नहीं समझी,

बताना हो बड़ा मुश्किल कठिन उससे छुपाना हो,

पलटकर देखना तेरा ग़लतफ़हमी सही मेरी,

इसी धोखे के चलते बेवजह हँसना हँसाना हो,

अदा इक तो सनम कातिल खुदा से तुमने है पाई,

गिरे बिजली मेरे दिल पे जो तेरा भीग जाना हो,

चुराने आँखों से काजल फलक से आ गए बादल,

घटा घनघोर घिर आये जो नज़रों का झुकाना हो.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on July 22, 2013 at 1:19pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया कुंती जी

Comment by Abhinav Arun on July 19, 2013 at 9:48pm
बहुत  खूब सूरत ग़ज़ल के लिए बधाई - 
चुराने आँखों से काजल फलक से आ गए बादल,

घटा घनघोर घिर आये जो नज़रों का झुकाना हो.

आकर्षित करता है ये शेर वाह !!

Comment by Vindu Babu on July 19, 2013 at 6:18pm
क्या बात है आदरणीय अरुन जी,अब तो आप ग़ज़ल के उस्ताद हो गये हैं।
सादर बधाई इस मनमोहक रचना पर!
Comment by Ketan Parmar on July 19, 2013 at 11:54am

वाह! बहुत ही सुन्दर! लाजवाब!

Comment by Ketan Parmar on July 19, 2013 at 11:54am

वाह वाह!

Comment by राज़ नवादवी on July 19, 2013 at 9:43am

वाह वाह! 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2013 at 7:12pm

"पलटकर देखना तेरा ग़लतफ़हमी सही मेरी,

इसी धोखे के चलते बेवजह हँसना हँसाना हो,""वाह ! आदरणीय..अरुण जी, बेहतरीन..बहुत शानदार शेअर..तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये

Comment by बृजेश नीरज on July 18, 2013 at 1:11pm

वाह! बहुत ही सुन्दर! लाजवाब! जितना पढ़ो दिल उतना ही मचलता है। हार्दिक बधाई आपको!

Comment by annapurna bajpai on July 18, 2013 at 12:58pm

आदरणीय अरुण जी बहुत ही बढ़िया गजल को साझा करने के लिए बधाई ।

Comment by coontee mukerji on July 18, 2013 at 12:28pm

बहुत ही दिलकश गजल है.

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