For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-४५

गाँव की ज़िंदगी में एक सुकून सा क्या है? खाली, काली, सरपट दौड़ती सडकों की तनहाई और दोनों बगल खड़े मुख्तलिफ (विभिन्न) दरख्तों की खामोशी भी क्यूँ अच्छी लगती है? दूर खेतों और ढलानों में चर रहीं बकरियों और गायों को देख के ऐसा क्यूँ लगता है कि ये दुनिया की सबसे बेहतरीन आर्ट गैलरी है?....जीती, जागती, पल पल नक्शोरंग बदलती.

 

मंडला मध्यप्रदेश सूबे का मानों दिल हो- हरियाली और ताज़गी से भरा, कहीं पहाड़ियों के आँचल से ढका तो कहीं जंगलों के बेल बूटों से सज़ा. गाँव गाँव आदिम प्रजाति के लोगों के आदिम घर, ...और उनकी मिट्टी की मोटी दीवारों पे रखी खपडों से सजी छतें ऐसी लगती हैं मानों अफ्रीकी स्त्रियों ने अपने महीन और घुंघराले बालों को कसी हुई चुन्नटों से सज़ा रखा हो.

 

दफ्तर के काम से गया था, मगर काम के साथ-साथ सफारी का सा मज़ा. शहरों में रहते रहते पैदा हो गई ऊब का एहसास तो तब होता है जब हम कुदरत के ऐसे ही किसी हल्क़े से गुज़रते हैं, किसी बेनाम से ढाबे पे रुकते हैं और किसी रामू-शामू-मोहन या महबूब के हाथों बनाई मिट्टी की खुशबू से सराबोर चाय पीते हैं, दिल खोल के हंसते बतियाते हैं, किरोसिन के स्टोव या लकड़ी के चूल्हे पे बने गरम-गरम देसी पकौड़े खाते हैं, सिक्कों में गिन के पैसे देते हैं, और फिर चल देते हैं अगले मुकाम पे.

 

© राज़ नवादवी, भोपाल

शनिवार १६/०२/२०१३ सायंकाल ०५.१० 

मौलिक एवं अप्रकाशित  

Views: 557

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on July 18, 2013 at 11:46am

आदरणीय भाई लक्ष्मण सा, मुझे खुशी है कि मेरे लिखे ने आपके अतीत के कुछ यादगार पलों को फिर से कुरेद दिया! 

Comment by राज़ नवादवी on July 18, 2013 at 11:45am

आदरणीया राजेश जी, आपका बहुत बहुत शुक्रिया. सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 17, 2013 at 8:25pm

बहुत सुन्दर प्राकर्तिक वर्णन हमेशा की तरह लेखनी का जादू ,बधाई आपको 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 17, 2013 at 6:02pm

आपने मेरी एक याद ताजा करदी | सन 1980 में मै बसवा तहसील बांदीकुई के एक पटवार हलके का निरिक्षण कर रहा था तब 

सायंकाल घूमते घूमते गाँव में कुल्हड़ में चाय पी, उसमे जो माटी के सौंधी खुशबु का आनंद आया वह मुझे आज तक याद है |

पेड़ की छाँव में बैठकर माटी की सौंधी महक का तो कहना ही क्या | हार्दिक बधाई श्री राज़ नवादवी:जी | सादर 

Comment by राज़ नवादवी on July 16, 2013 at 7:49pm

भाई बागी जी, आपका हार्दिक धन्यवाद, आपको कृति अच्छी लगी. आपकी शिकायत दुरुस्त है और मैं क्षमाप्रार्थी. जीवन कभी कभी शाहराह को छोड़ वीथिकाओं की राह ले लेता है और हम बदले परिदृश्य की नवीनताओं एवं चुनौतियों में खो से जाते हैं. बस ऐसा ही कुछ हुआ! सादर! 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 16, 2013 at 7:37pm

भाई राज नवादवी जी, ग्रामीण परिवेश की खूबसूरती कभी कभी राहे रोके खड़ी हो जाती हैं, प्राकृतिक सुन्दरता के मध्य भोले भाले ग्रामीण जो हर आगंतुक के लिए गुड़ पानी लिए खड़े रहते हैं, शहरों की मतलबी दुनिया में यह दृश्य मुश्किल है, बढ़िया लेखन बधाई स्वीकारें साथ में काफ़ी अंतराल पर आने हेतु शिकायत भी :-)

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
6 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
9 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
11 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service