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लघु कथा : दर्द (गणेश जी बागी)

ज फिर किसी ने पारस को चाकू मार दिया था, उसकी किस्मत अच्छी थी कि घाव बेहद मामूली था.  डाक्टर बाबू देखते ही पारस को पहचान गये, क्योंकि कोई आठ दस महीने पहले की ही तो बात है जब पारस के घर मे डकैती हुई थी और बदमाशों ने पारस के शरीर पर चाकू से अनगिन वार किये थे, तब इलाज के लिए उसे इसी डाक्टर के पास लाया गया था, गंभीर रूप से ज़ख़्मी होने के बावजूद भी इस बहादुर नौजवान के मुँह से उफ़ तक नहीं निकली थी, लेकिन इस बार अत्यधिक दर्द से रोता बिलखता देख डाक्टर साहब को बहुत आश्चर्य हो रहा था, अत; उन्होंने पूछ ही लिया :

"अरे पारस इतना तो तुम पिछली बार भी नही रोये चिल्लाए थे जितना अब रो रहे हो, जबकि इस बार तो घाव भी मामूली सा है,

"डाक्टर साहब ! पिछली बार कुछ अजनबी बदमाशों ने मुझ पर वार किया था जिन्हे मैं जानता तक नही, पर इसबार वार करने वाला मेरा ............"

"मौलिक व अप्रकाशित"

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 30, 2013 at 9:27am

आदरणीय प्रधान संपादक जी, लघुकथा पर प्राप्त आपका अनुमोदन किसी पुरस्कार से कम नहीं है, बहुत बहुत आभार आपका ।  


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 26, 2013 at 11:20pm

बहुत बहुत आभार अजय यादव जी | 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 26, 2013 at 11:17pm

आदरणीया कल्पना रामानी जी, लघुकथा आप तक पहुँच सकी, इसके लिए बहुत बहुत आभार, स्नेह बना रहे.

Comment by Meena Pathak on July 26, 2013 at 6:16pm

अपनों की दी हुई चोट बहुत गहरी होती है इसी लिए तकलीफ़ भी ज्यादा होती है | बधाई आप को आदरणीय गणेश जी 
सादर 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 26, 2013 at 3:14pm

आदरणीय भाई अभिनव अरुण जी, लघु कथा को सराहने हेतु ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ . 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 25, 2013 at 5:43pm

पीड़ा अगर अपनों से मिले तो घाव गहरा होता है, वह भर नहीं पाता | यह सन्देश देने में बिल्किल सार्थक सिद्ध हुए है यह 

सुन्दर लघु कथा, इसके लिए हार्दिक बधाई श्री गणेश जी "बागी" जी | सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 24, 2013 at 9:38pm

बिलकुल सत्य है अपनों के दिए ज़ख्म की पीड़ा बर्दास्त के बाहर होती है ..गागर में सागर को चरितार्थ करती शानदार लघु कथा .सादर बधाई के साथ 

Comment by Ketan Parmar on July 24, 2013 at 8:21pm

bahut hi sundar sir ji

Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 10:13pm

आदरणीय गणेश जी , आपकी लघु कथा वाकई मन को छु लेती है । आपको बहुत बधाई ।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 23, 2013 at 1:09pm

वाह वाह वाह !! इसको कहते हैं लघुकथा, न एक शब्द कम न ज्यादा.  दर्द बहुत नुमाया होकर उभरा है भाई गणेश बागी जी, एक और सफल लघुकथा हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

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