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नींद गवांई,सुख चैन गवांया

जीवन की आपा -धापी में 

अगर-मगर तेरी-मेरी में

समय गवांया ,बातों में 

धन दौलत ने लोभी बनाया 

ईमान गवांया नोटों में 

पूत सपूत न बन पाया 

बस ध्यान लगाया माया में

दीन दुखियों की सेवा करता

पुण्य कमाता लाखों में 

करता अच्छे कर्म अगर तो 

तर जाता भाव सागर से

ईमान धर्म की राह पे चलकर

करता पग के कांटें दूर

वैतरणी भी पार कर जाता

जन्म-मरण से जाता छूट   

(मौलिक व अप्रकाशित)

आरती शर्मा 

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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 11, 2013 at 2:15pm

आरती जी बेहतरीन रचना है बधाई स्वीकार करें

Comment by Aarti Sharma on July 11, 2013 at 1:48pm

रचना सराहने के लिए आपकी हार्दिक आभार आदरणीय अभिषेक जी...

Comment by Aarti Sharma on July 11, 2013 at 1:47pm

आपका तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय श्याम 

Comment by Shyam Narain Verma on July 11, 2013 at 11:05am

बहुत ही सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई......................................."

Comment by Abhishek Kumar Jha Abhi on July 11, 2013 at 10:35am
वाह ...आदरणीय आरती जी,
बहुत ख़ूब ...बहुत सुन्दर विषय पे कविता लिखी
आत्मचिंतन को दर्शाती हुई आपकी ये रचना।

इस रचना में दो पहलू नज़र आ रहा है :

(नींद गवांई,सुख चैन गवांया

जीवन की आपा-धापी में 

अगर-मगर तेरी-मेरी में

समय गवांया ,बातों में 

धन दौलत ने लोभी बनाया 

ईमान गवांया नोटों में 

पूत सपूत न बन पाया 

बस ध्यान लगाया माया में

दीन दुखियों की सेवा करता

पुण्य कमाता लाखों में)

यहाँ तक की कविता ...बहुत ख़ूब तुकबंदी से पढने में धारा प्रवाह लगी 

(करता अच्छे कर्म अगर तो 

तर जाता भाव सागर से

ईमान धर्म की राह पे चलकर

करता पग के कांटें दूर

वैतरणी भी पार कर जाता

जन्म-मरण से जाता छूट)

इन पंक्तियों में आपने बहुत अच्छा सार निकल है, पर पढने में तुकांत ना मिलने से,

अज़ीब लग रहा है।

आपके चिंतन को सलाम है।

शुभकामनायें

कृपया ध्यान दे...

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